Jind Red Zone villages : धान के फसल अवशेष जलाने के मामले में जींद के 13 गांव रेड जोन में, प्रशासन की रहेगी पैनी नजर

Anita Khatkar
By Anita Khatkar
Jind Red Zone villages : धान के फसल अवशेष जलाने के मामले में जींद के 13 गांव रेड जोन में, प्रशासन की रहेगी पैनी नजर
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Jind Red Zone villages : जींद : हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष पी राघवेंद्र राव ने मंगलवार को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम उपायुक्तों की बैठक ली। इसमें आगामी समय में धान की पराली जलाने की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए समीक्षा की गई और निर्देश दिए कि फसल अवशेष जलाने के मामले में अति संवेदनशील गांवों पर विशेष निगरानी रखी जाए।

इसके अलावा कृषि विभाग, ग्राम सचिव तथा पटवारियों की ग्राम स्तर पर टीमें बनाई जाएं जो किसानों को फसल अवशेष नहीं जलाने तथा पराली प्रबंधन के फायदों के बारे में जागरूक करेंगे। किसान धान फसल की कटाई एसएमएस लगी कंबाइनों से अनिवार्य करवाएं ताकि पराली प्रबंधन आसानी से किया जा सके। उपायुक्त ने इस बताया कि जिला के 13 गांव रेड जोन में आते हैं। इन पर विशेष ध्यान दिया जाए। इनमें गांव अलेवा, श्री रागखेड़ा, दनौदा कलां, धमतान साहिब, चक उझाना, रसीदां, उझाना, जयपुर, मुआना, अलीपुरा, बडनपुर, करसिंधु गांव शामिल है।

वीडियो कान्फ्रेंसिंग के बाद उपायुक्त मोहम्मद इमरान रजा ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि किसी भी गांवों में फसल अवशेष जलाने की घटना न हो, इसके लिए कृषि अधिकारी गांव स्तर पर गठित नोडल अधिकारी से तालमेल स्थापित कर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करें। नंबरदारों, ग्राम सचिवों से मिलकर गांवों में जागरुकता(Jind Red Zone villages) कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीणों को फसल अवशेष न जलाने के बारे में प्रेरित करें। किसान पराली का उपयोग पशुचारे के साथ-साथ अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए भी कर सकता है।

जहां पराली का उपयोग बिजली बनाने के लिए किया जाता है वहीं पराली का उपयोग अन्य सामग्री बनाने में भी किया जाता है। कृषि अधिकारी गांवों में जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन कर किसानों एवं महिलाओं को पराली जलाने से होने वाले नुकसान व उसके प्रबंधन की जानकारी दें।

उन्होंने बताया कि फसल कटाई के सीजन के दौरान प्रतिवर्ष किसानों द्वारा (Jind Red Zone villages)फसल अवशेष जलाने से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे जहां एक तरफ भूमि बंजर होती है वहीं वायु प्रदूषण से मानव जीवन व जीव जंतुओं पर भी संकट मंडराने लगता है। फसल अवशेषों में आग लगाने से हवा में प्रदूषण के छोटे-छोटे कणों से पीएम 2.5 का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है और सांस लेने में तकलीफ होती है। सांस के रोगियों के लिए यह प्रदूषण और भी अधिक नुकसानदायक है। वहीं फसल अवशेष जलाने से पैदा हुए धुएं से अस्थमा व कैंसर जैसे रोगों को भी बढ़ावा मिलता है।

फसल अवशेष प्रबंधन को अपनाएं किसान : उपायुक्त
उपायुक्त मोहम्मद इमरान रजा ने किसानों से अपील की कि वे फसल अवशेष प्रबंधन को अपनाएं, धान के फानों को जलाने की अपेक्षा उनका प्रबंधन करें। उन्होंने (Jind Red Zone villages)कहा कि किसान फसल प्रबंधन कर पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि नागरिक सजगता का परिचय देते हुए फसल अवशेष न जलाएं बल्कि अवशेषों का उपयोग प्रभावी तरीके से करें। बैठक में जिला राजस्व अधिकारी राजकुमार, डीडीए सुरेंद्र सिंह, एएई विजय कुंडू , एसडीओ अनिल कुमार भी उपस्थित रहे।

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