Spanish Flu: क्या थी कातक वाली बीमारी? करोड़ों लोगों की जान लेकर इस महामारी ने हरियाणा समेत पूरे भारत में मचाई थी भयावह तबाही, ट्रंप और गांधी का इससे कनेक्शन,जानें पूरी कहानी

Anita Khatkar
By Anita Khatkar
Spanish Flu: क्या थी कातक वाली बीमारी? करोड़ों लोगों की जान लेकर इस महामारी ने हरियाणा समेत पूरे भारत में मचाई थी भयावह तबाही, ट्रंप और गांधी का इससे कनेक्शन,जानें पूरी कहानी
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Spanish Flu: हम सबने कातक वाली बीमारी के बारे अपने बड़े-बुजर्गों से सुन रखा है, जिसमें वो बताया करते थे की एक इसी बीमारी आई थी जिसमें एक के बाद एक लोगों की मृत्यु हो रही थी। हरियाणा के हर गांव में यही माहौल था। गांव के एक व्यक्ति की चिता बुझने से पहले गांव के दूसरे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी । इसी के चक्कर में लोग एक की मृत्यु के बाद थोड़ी देर इंतजार करते की दूसरे किसी की मृत्यु हो और सबका एक साथ,एक ही चिता में दाह संस्कार किया जाए क्योंकि मौतों का आंकड़ा दिन नहीं घंटों के के हिसाब से बढ़ता था। Spanish Flu Pandemic बीमारी से पूरे हरियाणा में खोफ फेल गया था, इसे कातक वाली बीमारी के नाम से जाना जाता है। अनुमान है की Spanish Flu Pandemic ने दुनिया में 5 करोड़ से 10 करोड़ लोगों को अपनी चपेट में लेकर मृत्यु के द्वार तक पहुंचाया था। हरियाणा में इसे कातक वाली बीमारी (Kattak Wali Bimari) के नाम से क्यों जाना जाता है?किस जिले में कितने लोग मरे थे देखें पूरी जानकारी

Spanish Flu: कातक वाली बीमारी के फैलने के पीछे ये थी कहानी

जैसा कि हम जानते हैं 29 मई,1918 को पहले वर्ल्ड वॉर के खत्म होने के बाद जो भारतीय अंग्रेजों की तरफ से इस युद्ध में लड़ रहे थे। उनमें से जो जिंदा बच गए थे वो बॉम्बे (Mumbai) में समुद्री जहाज से वापिस भारत आते हैं और वहां से रेल आदि से अपने अपने घर आ जाते हैं । 10 जून,1918 को बॉम्बे पुलिस के 7 सिपाहियों को एकदम से तेज बुखार होता है और वो हॉस्पिटल में एडमिट करवाए जाते हैं । इन सातों सिपाहियों की ड्यूटी उसी समुद्री जहाज पर थी जिस पर वो भारतीय फौजी अंग्रेजों को तरफ से प्रथम वर्ल्ड वार में लड़कर वापिस जिंदा भारत लौटे थे । शुरू में लगा की नॉर्मल वायरल फीवर है लेकिन बाद में इनको चेक करने पर इनको कातक वाली बीमारी पाई गई जिसे स्पेनिश फ्लू भी कहते हैं ।

ये बॉम्बे के 7 सिपाही इस बीमारी के पहले मरीज थे और धीरे धीरे पुरे देश में Spanish Flu के मरीज दिखने लगे । एक रिपोर्ट के अनुसार कहते हैं कि जब वो फौजी रेल से अपने अपने घर गए तो साथ में ये बीमारी भी अपने साथ ले गए जो पूरे देश में फेल गई ।

Spanish Flu: क्या थी कातक वाली बीमारी? करोड़ों लोगों की जान लेकर इस महामारी ने हरियाणा समेत पूरे भारत में मचाई थी भयावह तबाही, ट्रंप और गांधी का इससे कनेक्शन,जानें पूरी कहानी
Spanish Flu: क्या थी कातक वाली बीमारी? करोड़ों लोगों की जान लेकर इस महामारी ने हरियाणा समेत पूरे भारत में मचाई थी भयावह तबाही, ट्रंप और गांधी का इससे कनेक्शन,जानें पूरी कहानी

अब सवाल ये है इन फौजियों के ये कातक वाली बीमारी कैसे लग गई ?

वैसे तो इसके बारे कोई प्रमाणिक तथ्य नहीं है फिर भी खोजने पर पता चलता है कि जहां ये फौजी प्रथम वर्ल्ड वॉर में लड़ रहे थे वहां साफ सफाई की भारी कमी थी और वहीं ये Spanish Flu यानी कातक वाली बीमारी जन्मी है ।
इसे उत्तर भारत में कातक वाली बीमारी और बाकी दुनिया में स्पेनिश फ्लू के नाम से जाना जाता है ।

 

Spanish Flu और कातक वाली बीमारी, नाम के पीछे की कहानी

स्पेनिश फ्लू नाम के पीछे 2 थ्योरी सामने आती हैं । पहली तो यह कि इस बीमारी का सबसे पहला केस स्पेन (Spain) में मिला था । कुछ रिपोर्ट्स ये कहती हैं कि UK, अमेरिका और फ्रांस में इसके केस स्पेन से पहले ही आ चुके थे और इन देशों ने इस बीमारी को छिपा लिया था और जब स्पेन में केस आए तो इन देशों ने कहा कि हमारे यहां भी ये केस हैं और इसका नाम स्पेनिश फ्लू (Spanish Flu) रखा गया। दूसरी थ्योरी के अनुसार स्पेन में इस बीमारी से सबसे ज्यादा मौत हुई थी इसीलिए इसका नाम स्पेनिश फ्लू पड़ा।
उत्तर भारत में यह बीमारी कातक के महीने में आई थी इसीलिए इसका नाम कातक आली बीमारी पड़ा ।

Spanish Flu: हरियाणा तत्तकालीन पंजाब में इस बीमारी का फैलना

हरियाणा जो उस समय पंजाब का हिस्सा था,तो पंजाब के सैनिटरी इंस्पेक्टर ने एक रिपोर्ट पेश कि और बताया कि हरियाणा और पंजाब में इस कातक वाली बीमारी का पहले केस 1 अगस्त,1918 को आया था जब शिमला छावनी के एक सिपाही को संक्रमित पाया गया था । इसके बाद अंबाला जिले इसके केस निकलकर आए थे । शुरु में यह बीमारी फौजियों में थी, फिर डाकियों में और उसके बाद रेलवे के कर्मचारियों में फैली और 2 महीने में हरियाणा समेत पूरा पंजाब इसकी चपेट में आ गया था । ये इतनी तेज़ी से फैलती थी की अनुमान लगाया गया की अगर ये बीमारी एक साल चल गई तो राज्य की 60 प्रतिशत आबादी खत्म हो जाएगी ।

Spanish Flu यानी कातक वाली बीमारी के ये थे लक्षण

इसके लक्षणों की बात करें तो इसमें 104°F तक बुखार चला जाता था ।
पल्स रेट 80 तक आ जाती थी । सारे शरीर में दर्द होता था और सांस की नली में सूजन हो जाती थी और आखिर में नाक और फेफड़ों में खून का रिसाव शुरू हो जाता था और उसके बाद 3 दिन के अंदर संक्रमित व्यक्ति की मौत हो जाती थी ।

Spanish Flu Deaths In Haryana: कातक वाली बीमारी से मरने वालों की जिलेवार डिटेल्स

कातक आली बीमारी ने हरियाणा के गुड़गांव यानी आज के गुरुग्राम में सबसे भयंकर बुरा हाल मचाया था । कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार गुरुग्राम की जनसंख्या उस समय 7 लाख 59 हजार 389 थी जिसमें से कातक वाली बीमारी से 63 हजार 71 लोगों की मौत हो गई थी । दूसरे नंबर पर था रोहतक जिला जिसकी जनसंख्या 1918 में 7 लाख 14 हजार 834 थी जिसमें से कातक वाली बीमारी से 61 हजार 49 लोगों की मौत होगी थी ।

तीसरे नंबर पर करनाल जिसकी जनसंख्या 8 लाख के करीब 7 लाख 99 हजार 787 थी जिसमें से कातक वाली बीमारी से 52 हजार लोग मौत के मुंह में पहुंच गए थे ।

चौथे नंबर पर हिसार जिसकी जनसंख्या 8 लाख 4 हजार 889 थी जिसमें से 44 हजार 327 लोगों की मौत हो गई थी ।

5वें नंबर पर अंबाला थे जिसमें पहला केस आया था यहां कातक वाली बीमारी से 6 लाख 89 हजार 970 में से 28 हजार लोगों के मौत हो गई थी ।

Spanish Flu से महिलाओं की हुई थी सबसे ज्यादा मौतें, देखें कारण

पंजाब के सैनिटरी इंस्पेक्टर की रिपोर्ट के अनुसार इस बीमारी से पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा संख्या में मरी थी क्योंकि 1918- 1919 के उस समय महिलाओं की इम्युनिटी बहुत कमजोर थी और महिलाएं पूरे परिवार के खाना खाने के बाद सबसे लास्ट में खाना खाती थी और बचा हुआ खाना ही इन महिलाओं को मिला करता था । बताया जाता है कि एक तो सभी के खाने के बाद का बचा हुआ खाना और कई बार खाना भी नहीं बचता था तो भूखे पेट भी महिलाओं को सोना पड़ता था ,जिससे उनकी इम्यूनिटी कमजोर हो जाती थी और वह आसानी से कातक वाली बीमारी की चपेट में आ जाती थी।

दूसरा,अगर घर में किसी पुरुष को Spanish Flu की बीमारी हो जाती तो महिला ही उसको संभालने और उसकी पट्टी वगैरा करने जाती थी जिससे महिलाएं भी इस बीमारी की चपेट में आसानी से आ जाती थी।

Spanish Flu: अनुसूचित जाति के लोगों में सबसे ज्यादा था मरने का प्रतिशत

पंजाब के सैनिटरी इंस्पेक्टर की रिपोर्ट के अनुसार अगर सामान्य जाति में 1000 लोगों को यह बीमारी थी तो उसमें से मरने वालों की संख्या 19 ही थी जबकि अनुसूचित जाति के 1000 लोगों को यह कातक वाली बीमारी हुई तो उसमें से 61 लोगों की मौत हो गई थी । अनुसूचित जाति के लोगों का ज्यादा परसेंटेज में मरने के पीछे बताते हैं कि ये अधिकतर लोग देश को स्वच्छ रखने के लिए साफ-सफाई का काम करते थे,जिससे इनको यह बीमारी आसानी से लग जाती थी । इनको साफ-सफाई का माहौल नहीं मिल पाया और जिसकी वजह से ये ज्यादा संख्या में मरे थे।

Spanish Flu Second Wave: कातक वाली बीमारी की दूसरी लहर ने उत्तर भारत में तबाही मंजर दिखाया

15 अक्टूबर,1918 को स्पेनिश फ्लू नामक यह बीमारी अपनी दूसरी लहर तबाही लेकर आई और 08,नवंबर 1918 तक दूसरी लहर चली । इन्ही बीच के दिनों में सबसे ज्यादा मौतें हुई । 22-23 दिनों में पूरा उत्तर भारत जिसमें हरियाणा पंजाब,उत्तर प्रदेश और राजस्थान का पूरा इलाका सुनसान हो गया था । कहीं दाह संस्कार के लिए जलाने की जगह नहीं थी तो कहीं दफनाने की जगह नहीं थी । गलियों से लेकर सड़कों तक लाशें मिला करती थी ।

लोग इतना तक कहने लगे थे की रोटी पानी खा पी लो फिर इक्कठे बुग्गी/ रेहड़ा में लेकर चलेंगे और एकसाथ दाह संस्कार करेंगे ।
ये बात आज सोच कर भी देखें तो रूह कांप जाती है ।
एक और अजीब बात हुई इस कातक वाली बीमारी में की इसमें 20 से 40 के बीच के लोग- लुगाई यानी महिला-पुरुष यानी सबसे ज्यादा मरे थे । बच्चों और बूढ़ों पर इसका असर कम ही दिखा था ।

Spanish Flu: कातक वाली बीमारी से मरने वालों की संख्या का डाटा

इस Spanish Flu बीमारी का असर ये हुआ की हरियाणा और पंजाब की 1911 की जनसंख्या और 1921 की जो जनसंख्या थी उसमें 7 लाख 72 हजार 177 का फर्क था यानी 1921 में 1911 की तुलना में 7 लाख से ज्यादा लोग कम थे । बात करें तो पंजाब (उस समय हरियाणा समेत) में 8 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी ।
भारत के इतिहास में पहली बार एकसाथ इतनी मौतें हुई थी । मोटा-मोटा ये अनुमान लगाया गया है कि इस कातक वाली बीमारी यानी स्पेनिश फ्लू से पूरी दुनिया में 5 करोड़ से 10 करोड़ के बीच लोग मारे गए और अकेले भारत की बात करें तो भारत में डेढ़ करोड़ लोग (1.5 करोड़) इस बीमारी की चपेट में आकर मर गए थे।

Spanish Flu: गांधी का चपेट में आना और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के परिवार का खत्म होना

इस कातक वाली बीमारी की पहली लहर में महात्मा गांधी समेत उनके शिष्य भी इस बीमारी की चपेट में आ गए थे पर बाद में ठीक हो गए थे । प्रसिद्ध कवि और लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला अपनी पुस्तक में बताते हैं कि उनका सारा का सारा परिवार उनकी आंखों के सामने इस बीमारी से मर गया था और उस समय इतनी बुरी हालत थी कि वो अपने परिवार के लोगों के दाह संस्कार के लिए लकड़ी भी इक्कठी नहीं कर पाए थे । एक और बात कही जाती है की डोनाल्ड ट्रंप जो अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं, उनके दादा भी इसी बीमारी की चपेट में आकर मर गए थे ।

इतना सब कुछ हो तो ये सोचना तो लाजमी है की उस समय की अंग्रेजी सरकार क्या कर रही थी?

अंग्रेज इस बीमारी से डरकर शिमला,डलहौजी की तरफ भाग गए और वहां से बस ऑर्डर देते थे और अपने पास किसी को नहीं आने दिया करते थे । इतना सब देखकर अंग्रेजी सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए और कहा की उनके बस का कुछ नहीं है जिससे इस बीमारी को रोका जा सके ।

आम भारतीयों ने एकता के दम पर इस बीमारी को देश से भगाया

कातक वाली इस बीमारी के कारण देश में एकता हुई तो दवाई और इलाज ना मिलने से जो लोग अंग्रेजों के पक्ष में थे वो भी उनसे नाराज हो गए और जगह-जगह विरोध शुरू हो गए और पूरा भारत बिना किसी जाति और धर्म के भेदभाव के एक साथ अंग्रेजों के विरोध में आया था । डॉक्टर, नर्स ,वकील,NGO,व्यापारियों और आम लोग सभी ने छोटे-छोटे क्लिनिक खोले और लोगों का इलाज करना शुरू किया और जो मर गए उनका दाह संस्कार भी किया । सड़कों से लेकर रेलगाड़ियों में से लाशें हटाई और एक साथ मिलकर ये बीमारी भारत से भगाई। कुछ महीने बाद जनवरी 1919 तक लगभग लगभग यह बीमारी चली गई थी यानी खत्म हो गई थी ।

Spanish flu: अंग्रेजी सरकार का विरोध

कातक वाली बीमारी जाने के बाद जनवरी 1919 में अंग्रेजी सरकार पहाड़ों से उतरकर नीचे आई और शर्मनाक बयान दिया की ये बीमारी बाहर से नहीं आई थी, ये भारतीयों का जो गंदा रहन सहन है उसकी वजह से यहां पनपी है । इसके बाद जनवरी से ही लोगों का अंग्रेजों के खिलाफ विरोध बढ़ता गया । ये विरोध कहीं विद्रोह में ना बदल जाए इसी के डर में अंग्रेजी सरकार मार्च 1919 में काले कानून लेकर आई जिसे हम रोल्ट एक्ट के नाम से जानते हैं जिसमें अंग्रेजी सरकार का विरोध करने पर या विरोध के शक में ही भारतीयों को बिना कोई कानूनी सहायता दिए पकड़कर जेल में कैद कर लिया जाता । उन्हें ना ही वकील कोई मिलता,ना कोई जज उनका केस सुनता जिसका आगे विरोध करने पर 13 अप्रैल,1919 को जलियांवाला हत्याकांड हुआ और जिसका आदेश देने वाले जनरल डायर को 13 मार्च,1940 को उधम सिंह ने अपनी पिस्टल से गोली मारकर बदला लिया ।

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