खेती में अधिक उपज की लालसा और फसल में कीटनाशकों के अंधाधुंध छिड़काव से हरियाणा की जमीन फसलों के रूप में (Farmer Success Story) जहर उगल रही है लेकिन इस कुछ किसान जहरमुक्त खेती भी कर रहे हैं, जो अपनी फसलों में कीटनाशक का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करते। इन किसानों में एक है जींद जिले का गांव मोहनगढ़ छापड़ा निवासी वजीर सिंह।
वजीर सिंह पिछले 18 साल से जहरमुक्त खेती कर रहा है। हर साल 10 एकड़ से ज्यादा जमीन में वजीर सिंह गेहूं, बाजरा और कपास की फसल उगाता है, जिसमें कीटनाशक स्प्रे का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करता। वजीर सिंह (Wazir singh) के खेत में खड़ी गेहूं की फसल की एडवांस बुकिंग होने लगती है। लोग कटाई से पहले ही गेहूं खरीद के लिए खेत में पहुंचने लगते हैं। जहरमुक्त खेती अब वजीर सिंह के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। वजीर सिंह ने अकेले इसकी शुरूआत की थी लेकिन अब उसके साथ सैकड़ों किसान जुड़ गए हैं।
18 साल पहले की थी जहरमुक्त (Farmer Success Story) खेती की शुरूआत
वजीर सिंह बताते हैं कि वर्ष 2006 में कपास की फसल गुलाबी सुंडी की चपेट में आ गई थी। उस दौरान गुलाबी सुंडी से बचाने के लिए किसानों ने 30 से ज्यादा स्प्रे किए लेकिन उसके बाद भी बीमारी काबू में नहीं आई थी। उस दौरान वह डा. सुरेंद्र दलाल के संपर्क में आए। डा. सुरेंद्र दलाल उन दिनों किसानों को जागरुक कर रहे थे कि बिना पेस्टीसाइड के भी खेती संभव है और इसके लिए हमें फसलों के मित्र कीटों को बचाना पड़ेगा और इनकी संख्या बढ़ानी पड़ेगी। इसके बाद वजीर सिंह ने डा. सुरेंद्र दलाल से प्रशिक्षण लिया और जमीन के मित्र कीटों तथा शत्रु कीटों की पहचान की।
प्रशिक्षण के बाद उसने पेस्टीसाइड का प्रयोग करना छोड़ दिया। शुरूआत में पैदावार पर असर जरूर पड़ा लेकिन धीरे-धीरे फसल पैदावार में बढ़ौतरी हुई। अब जितनी दूसरे खेतों में पैदावार होती है, उतनी ही पैदावार बिना कीटनाशक के उसकी जमीन में हो रही है। वजीर सिंह बताते हैं कि अब उनके साथ निडाना, निडानी, ललितखेड़ा, ईगराह, रधाना, अलेवा, रूपगढ़, रामराय, भैण, अलेवा समेत दर्जनों गांवों के किसान जुड़ चुके हैं, जो जहरमुक्त खेती की तरफ अग्रसर हैं। कपास की खेती की बात करें तो प्रति एकड़ आठ से 10 क्विंटल कपास की पैदावार औसतन होती है।
खेती में कीटनाशक स्प्रे पर लगने वाले हजारों रुपये की होती है बचत
किसान वजीर सिंह बताते हैं कि सामान्य किसान अपनी फसलों में स्प्रे करते हैं। एक स्प्रे में एक हजार से 1500 रुपये तक का खर्च आता है। पूरे साल में की बात की जाए तो 15 से 20 हजार रुपये का खर्च कीटनाशक स्प्रे पर आ जाता है। जबकि वह अपनी फसल में जब भी जरूरत होती है तो जिंक, यूरिया और डीएपी का घोल बनाकर छिड़कते हैं। इससे फसल का मित्र कीट पर कोई असर नहीं पड़ता, जबकि शत्रु कीट या बीमारी को खत्म करने में मदद मिलती है। एक स्प्रे पर मात्र 90 रुपये तक अधिकतम (Farmer Success Story) खर्च आता है।
दरअसल जिंक के घोल से मित्र कीटों की संख्या बढ़ जाती है और मित्र कीटों की संख्या बढ़ने के बाद यह दूसरे कीटों को खत्म कर देते हैं। इसके अलावा वह पौधों को जिस चीज की जरूरत होती, वह पूरी करते हैं। जिंक, डीएपी और यूरिया का घोल बनाकर छिड़कने से पौधे को भी ताकत मिलती है। वजीर सिंह बताते हैं कि पिछले दिनों हरियाणा एग्रीकल्चर यूनियवर्सिटी में आयोजित कृषि मेले में उन्हें कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने वजीर सिंह (Wazir singh farmer success story) को सम्मानित भी किया था। डा. सुरेंद्र दलाल (Dr Surender Dalal model) के माडल के अनुसार वजीर सिंह पिछले 18 साल से मित्र कीटों को बचाने में जुटे हुए हैं।