स्मृति ने बताया कि, 18 जुलाई को ही अंशुमन से उनकी बहुत लंबी बातें हुई कि हम दोनों आगे के 50 साल एक-दूसरे के संग कैसे बिताने वाले हैं।
हमारा घर होगा, बच्चे होंगे, लेकिन अगले दिन सुबह ही मुझे फोन आया कि अंशुमन नहीं रहे। ये बात सुनकर 7-8 घंटे तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ।
मैं बस सोच रही थी कि काश अंशुमन वापस आ जाएंगे, लेकिन नहीं ! अब मेरे हाथों में कीर्ति चक्र है और ये सच है अंशुमन नहीं रहे।
वो हमारे हीरो है, लेकिन हम उनके बिना जीने की कोशिश करेंगे। क्योंकि उसने भी देशवासियों के लिए अपनी जान गंवाई है।