तवायफों की जिंदगी को चकाचौंध से भरा हुआ बताते हैं, जहां गीत-संगीत को बढ़ावा मिलता था और तहजीब व इज्जत की दुनिया सजती थी।
तवायफों की जिंदगी सिक्के के दो पहलू जैसी होती है, जिसका रंगीन पहलू ही देखने को मिलता है, जबकि पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही है।
तवायफों को चकाचौंध भरी महफिल सजाते वक्त जिंदगी में कोठे पर 5 तरह के बलिदान देने पड़ते हैं। उसके बाद ही कद्रदान मिलते हैं।
तवायफ का पहला बलिदान उस समय देती थी, जब वो कोठे पर लाई जाती थी। उसे अपने परिवार का नाम-पहचान सब त्यागकर उन्हें भूलना पड़ता है।
दूसरा बलिदान ये होता था कि, मशहूर तवायफ बनने के लिए उन्हें घंटो रियाज करना पड़ता था, जो मंथली पीरियड्स के दिनों में भी नहीं रुकता था।
तवायफ को जिंदगी को सबसे दर्दनाक बलिदान गर्भ ठहरने पर देना पड़ता था। उसका गर्भपात कराया जाता था। यदि बच्चा होता भी था तो उसे तवायफ को खुद से दूर करना पड़ता था।
हर तवायफ की जिंदगी भी एक जैसी नहीं होती थी। कई तवायफ को दासी की तरह जिंदगी बिताने का भी बलिदान देना पड़ता था।
तवाय़फ को पांचवा और आखिरी बलिदान प्यार को अपनी जिंदगी से दूर करके देना पड़ता था। कोठे पर आने के बाद तवायफ किसी से प्रेम का रिश्ता नहीं जोड़ सकती थी।