Jind agriculture news : जींद के सफीदों उपमंडल के गांव डिडवाड़ा में 36 वर्षीय युवा किसान विजेंद्र शर्मा किसानों व अन्य लोगों को प्राकृतिक खेती के प्रति प्रेरित कर रहा है। वह बिना खाद व दवाई के एक एकड़ में गेहूं व धान के साथ-साथ सब्जियों की पैदावार कर रहा है। उसी का परिणाम है कि उसकी फसलें व सब्जियां हाथोहाथ बाजार से अधिक भावों में बिक रहीं हैं। उसका मकसद है कि प्राकृतिक खेती के उत्पादों का प्रयोग करके स्वस्थ समाज का निर्माण हो।
विजेंद्र शर्मा ने बताया कि वह पूरी पैदावार बिना जहर-बिना बाजार के जीरो खर्चे पर यह खेती कर रहा है। इसकी प्रेरणा उसे आयुर्वेदाचार्य राजीव दीक्षित से मिली है। वे पिछले 3 सालों से किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक करने का काम कर रहे हैं। उसने बताया कि वह जंगल मॉडल से खेती कर रहा है। फिलहाल उसने प्राकृतिक खेती की शुरूआत एक एकड़ से की है। आगे उसका लक्ष्य 5 एकड़ में प्राकृतिक तरीके से फसल उगाने का है।
राजीव दीक्षित को प्रेरणास्रोत मानने वाले विजेंद्र शर्मा ने बताया कि वह प्राकृतिक खेती करने के लिए एक एकड़ जमीन में 5 किलो गोबर, 5 किलो मूत्र, एक किलोग्राम गुड़, एक किलो बेसन व एक किलो पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी डालकर घोल तैयार करता है। फसल लगाने के बाद उसे घोल को 3 से 4 बार पानी के खाल में डालकर फसल तक पहुंचाता है। इस घोल के माध्यम से खेत में अपने आप जीवामृत पैदा हो जाते हैं। ये जीवामृत खेत की जमीन को पूरी तरह से हल्का फुल्का बना देते हैं और अपने आप में खेत के अंदर खाद का काम करते हैं। जीवामृत के माध्यम से हल्की फुल्की हुई जमीन में पानी की कमी नहीं रहती और वाटर रिचार्जिंग का भी काम हो जाता है।
जमीन में हमेशा नमी रहती है तथा जमीन सख्त नहीं होती। इसके अलावा ये जीवामृत खेत की मिट्टी के अंदर पड़े कंकरों व रेत तक को खाकर जमीन को साफ-सुथरा कर देते हैं। इस प्रयोग के माध्यम से खेत में बीमारियां नहीं होती और ना ही फसल में खरपतवार पैदा होता है। जिसके कारण फसल में किसी प्रकार के उर्वरक व कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती। उसने बताया कि इस विधि से तैयार फसल में वजन भी ज्यादा होता है। फसल लगाने में उसका केवल जुताई व कटाई का ही खर्च आता है। इसके अलावा उसका कोई खर्च नहीं रहता। कुछ साल फसल होने के बाद उसके पास खुद का अपना प्राकृतिक बीज तैयार हो जाता है और आगे की फसल को लगाने में वह स्वयं का बीज प्रयोग करता है।
आमतौर पर किसान की एक एकड़ में करीब एक लाख रूपए की फसल की पैदावार होती है लेकिन इस विधि के माध्यम से उसकी फसल डेढ़ लाख रूपए तक हो जाती है। सहीं मायनों में यह विधि थोड़े से खर्ख्च में अधिक मुनाफे वाली है। उसके द्वारा उम्त्पादित अनाज व सब्जियां बिक्री के लिए बाजार में ले जाने की आवश्यकता नहीं रहती बल्कि लोग उसके खेत से ही ले जाते हैं। उसने बताया कि वे धान व गेंहू के अलावा प्याज, मूली, लहसुन, हल्दी, गाजर व चुकंदर सहित अनेक सब्जियों का उम्त्पादन बिना उवर्रकों व कीटानाशकों के प्रयोग के कर रहा है।
उसकी फसल को लेने और उसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आने लगे हैं। इसके अलावा उसके प्राकृतिक बीज की भी काफी डिमांड है। किसानों खाद व दवाई वाली खेती की बजाए प्राकृतिक खेती को अपनाना चाहिए। प्राकृतिक खेती के माध्यम से अपने घर के साथ-साथ पूरे समाज को स्वस्थ बनाया जा सकता है। प्राकृतिक खेती के उत्पादों को प्रयोग करके व्यक्ति गंभीर बीमारियों से मुक्त रहता है।