Traffic light camera working system : दिल्ली जैसे महानगरों में रहते हैं तो चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल वाली हरी,लाल,पीली बत्ती का जलवा और कैमरे तो देखे ही होंगे । अब देश के महानगरों के साथ शहरों में ट्रैफिक कंट्रोल इन्हीं कैमरों (traffic camera) और ट्रैफिक सिग्नल से हो रहा है ।
बाइक पर ट्रिपलिंग कर रहे हों या हेलमेट नहीं लगाया हो,
बाइक या गाड़ी स्पीड लिमिट से ऊपर हो और गलती से ट्रैफिक सिग्नल भी क्रॉस कर लिया है तो रोड़ पर ऐसी गलतियां करने पर पहले फोन में मैसेज आता है फिर घर आता है फोटो और चालान। अब तो ये कैमरे हर गली नुक्कड़, चौराहे पर देखने को मिल जाएंगे। लेकिन यह सब होता कैसे हैं ? क्या ये कैमरे कोई गलती तो नहीं करते हैं ? यह नॉर्मल सीसीटीवी कैमरा से कितना अलग है ?
कोई ट्रैफिक रूल तोड़ने पर आपकी वीडियो और फोटो क्लिक करने गाड़ी की नंबर प्लेट स्कैन करने से लेकर चालान भेजने तक का सारा काम क्या है ? किसी छोटे शहर या कस्बे में ट्रैफिक कंट्रोल करने के लिए आज भी ट्रैफिक पुलिस को ही ज्यादा संख्या में रखना पड़ता है । किसी चौक चौराहे पर कोई गाड़ी वाला ट्रैफिक नियम तोड़ेगा तो सफेद वर्दी पहने ट्रैफिक पुलिस कर्मचारी सीटी बजाते हुए गाड़ी को रुकवाएगा और फिर गर्म- नर्म बातों के बीच ट्रैफिक पुलिस अधिकारी वहीं चालान का पर्चा भर के गाड़ी वाले को थमा देगा । लेकिन दिल्ली जैसे बड़े शहरों में यह झंझट लगभग खत्म होता जा रह है क्योंकि अब ट्रैफिक पुलिस वालों का काम आसान करने के लिए आधुनिक तकनीक से युक्त ट्रैफिक कैमरे आ गए हैं ।
नॉर्मल सीसीटीवी से कैसे अलग हैं ट्रैफिक कैमरे ?
बहुत सारी कंपनियां ट्रैफिक पुलिस के साथ मिलकर ट्रैफिक मैनेजमेंट पर काम कर रही है। नॉर्मल सीसीटीवी कैमरे जो घर या ऑफिस वगैरह में लगाए जाते हैं वो वीडियो को रिकॉर्ड और लाइव फील्ड करते हैं । इसके अलावा वो लाइव फीड से भी रिकॉर्डिंग कर सकते हैं । यह नॉर्मल वीडियो कैमरा की तरह होता है ।
जबकि जो स्पीड कंट्रोल कैमरे होते हैं वो स्पीड मेजरमेंट के लिए प्रयोग होते हैं । ये नॉर्मल कैमरा से थोड़े से हटके होते हैं । ये हाई फ्रेम रेट कैमरा होते हैं और हाई स्पीड डिटेक्शन भी कर सकते हैं । इनका काम स्पीड को डिटेक्ट करना और नंबर प्लेट का स्नैपशॉट लेना और कहीं कोई वायलेशन हुआ है तो उसे कंट्रोल रूम में भेजना होता है ।
क्या खाशियत है इन ट्रैफिक कैमरों (traffic cameras) मे
वैसे तो ट्रैफिक कंट्रोल के लिए अनेक प्रकार के मॉडल उपलब्ध होते हैं । अगर आपको सिंगल लाइन में स्पीड डिटेक्शन करना है तो 2 मेगापिक्सल का ट्रैफिक कैमरा काफी रहता है । अगर आपको मल्टीलाइन में स्पीड देखनी हो तो तीन लेन के लिए 9 से 12 मेगापिक्सल कैमरे की जरूरत होती है । ये एक हाई फ्रेम रेट कैमरे होते हैं । ये 60 फ्रेम प्रति सेकंड पर काम करते हैं । इनसे 250 kmph तक की स्पीड से जाने वाली गाड़ी की नम्बर प्लेट और गाड़ी के पीछे का स्नैपशॉट भी लिया जा सकता है ।ये ट्रैफिक कैमरे भी अलग अलग कार्यप्रणाली पर आधारित होते हैं जैसे कुछ केवल स्पीड मापेंगे,कुछ रेड लाइन को देखेंगे ।
वर्तमान में दिल्ली में रडार स्पीड डिटेक्शन कैमरे लगे हुए हैं ।
इसमें रडार गाड़ी की स्पीड चेक करता है और कैमरा उसके फोटो वीडियो आदि लेता है । इन कमरों की मदद से बिना हेलमेट से लेकर ट्रिपल राइडिंग, गाड़ी में सीट बेल्ट पहनी है या नहीं आदि का भी सटीक मूल्यांकन किया जा सकता है ।
Traffic camera : क्या रात में इन कैमरा की नजर से बचा जा सकता है ?
क्या ये कैमरे (traffic camera) 24 घंटे काम करते हैं ? रात में काम करने के लिए इन कैमरों में स्पेशल इंफ्रारेड सिस्टम लगाया जाता है जिससे ये रात में भी आसपास अच्छी लाइटिंग ना होने पर भी नंबर प्लेट और गाड़ी का स्नैपशॉट ले लेते हैं ।
वैसे इनसे बचना इतना भी आसान नहीं हैं क्योंकि कई बार कैमरा की रेंज में आने से पहले हम अपनी स्पीड कम कर देते हैं किन्तु अब इनमें एवरेज स्पीड डिटेक्टर भी उपलब्ध है जिससे अपनी एवरेज स्पीड का अनुमान लगाया जा सकता है और जरूरत पड़े तो चालान आपके घर भेजा जा सकता है । ये कैमरे सामान्यतः दिन और रात दोनों में काम करते हैं। ये 5 से 6 साल तक हर मौसम में काम करते रहते हैं । बीच-बीच में इनकी रिपेयरिंग की जाती है ताकि एक्यूरेसी स्टिक रहे ।
तापमान ज्यादा होने पर भी उनकी एक्यूरेसी सही रहती है।
वर्तमान में ट्रैफिक सिस्टम की मैनेजमेंट के लिए लाइव फीड के साथ एवरेज स्पीड डिटेक्टर का संयुक्त प्रयोग करना अधिक सुविधाजनक रहेगा । ट्रैफिक कैमरा कैसा होता है कैसे काम करता है यह तो अब तक समझ लिया होगा । लेकिन क्या चालान बनाने का काम भी कैमरा ही करता है??
ट्रैफिक कैमरा (traffic camera) का डाटा ट्रैफिक पुलिस के कंट्रोल रूम को भेज दिया जाता है और अगर किसी ने ट्रैफिक रूल तोड़े हैं तो उसके सबूत के तौर पर गाड़ी के फोटो और वीडियो ट्रैफिक पुलिस द्वारा देखे जाते हैं और उसके बाद ट्रैफिक पुलिस तय करती है कि इस गाड़ी का चालान करना है या नहीं और अगर चालान बनता है तो उसके बाद गाड़ी के नंबर प्लेट के गाड़ी मालिक का पता लगाकर उसके एड्रेस पर चालना भेज दिया जाता है ।