How drug prices are controlled: नई दिल्ली: भारत में दवाओं की कीमतें लोगों की जिंदगी पर गहरा असर डालती हैं। उच्च मेडिकल खर्च के कारण लाखों लोग गरीबी में धकेल जाते हैं। आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग आधा मेडिकल खर्च दवाओं की खरीद पर होता है। इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार ने हाल ही में कैंसर की दवाओं की कीमतें घटाने का महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
Cancer medicines in India: कैंसर की दवाओं पर नई पहल
How drug prices are controlled: नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने तीन महत्वपूर्ण कैंसर दवाओं- ट्रास्टुजुमैब,ओसिमर्टिनिब और डुरवालुमैब की अधिकतम खुदरा कीमत (MRP) को घटाने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, केंद्रीय बजट 2024-25 में इन दवाओं को कस्टम ड्यूटी से मुक्त कर दिया गया था और हाल ही में वित्त मंत्रालय ने इन पर GST को 12% से घटाकर 5% कर दिया है। इन सभी उपायों का मुख्य उद्देश्य कैंसर उपचार के लिए दवाओं की कीमत को कम करना है, जिससे अधिक से अधिक लोग इनका उपयोग कर सकें।
How drug prices are controlled: दवाओं की कीमतें कैसे तय होती हैं?
भारत में दवाओं की कीमतों का निर्धारण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि इलाज सभी के लिए सुलभ रहे। दवाओं की कीमतें नियंत्रित करने के लिए सरकार ने कई नियम बनाए हैं। आवश्यक दवाओं की एक सूची बनाई जाती है, जिसे नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशियल मेडिसिन्स (NLEM) कहा जाता है। इस सूची में वे दवाएं शामिल होती हैं जो जन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मानी जाती हैं।
ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO)
How drug prices are controlled: NLEM में शामिल दवाओं पर ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO) के जरिए मूल्य नियंत्रण लगाया जाता है। इसका अर्थ है कि इन दवाओं की कीमत सरकार द्वारा तय की जाती है, ताकि ये दवाएं आम लोगों के लिए सस्ती बनी रहें। हर कुछ सालों में स्वास्थ्य मंत्रालय और विशेषज्ञों की मदद से NLEM को अपडेट किया जाता है, जिसमें नई दवाएं शामिल की जाती हैं। वर्तमान में NLEM 2022 के अनुसार 384 दवाएं इस प्राइस कंट्रोल सिस्टम के तहत आती हैं।
Drug market price controlled: मार्किट प्राइस का निर्धारण
How drug prices are controlled: भारत में दवाओं की अधिकतम कीमत तय करने के लिए मार्किट। बेस्ड प्राइसिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत, यदि कोई दवा बाजार में 1% या उससे अधिक हिस्सेदारी रखती है, तो उसकी औसत कीमत और 16% का रिटेल मार्जिन जोड़कर उस दवा की अधिकतम कीमत तय की जाती है। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि दवाओं की कीमतें अत्यधिक नहीं बढ़ें और कंपनियों को भी उचित मुनाफा प्राप्त हो सके।
NPPA की भूमिका
नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) एक सरकारी संस्था है जो दवाओं की कीमतों पर निगरानी रखती है। जब भी कोई आवश्यक दवा महंगी होती है, NPPA उसके दाम घटाने का आदेश देती है। हाल ही में, तीन कैंसर दवाओं पर जीएसटी में की गई कमी इसका स्पष्ट उदाहरण है।
Market baded drug price: लागत आधारित से बाजार आधारित प्रणाली का परिवर्तन
पहले दवाओं की कीमतें लागत आधारित सिस्टम पर निर्भर करती थीं, यानी दवा बनाने में जो खर्च होता था, उसके ऊपर एक छोटा सा मुनाफा जोड़कर कीमत तय की जाती थी। लेकिन 2013 में इसे बदलकर बाजार आधारित मॉडल पर कर दिया गया। इस परिवर्तन से दवाओं की कीमतें अधिक प्रतिस्पर्धी और सस्ती हो गई हैं।
नतीजा:
भारत में दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण एक जटिल लेकिन आवश्यक प्रक्रिया है। कैंसर की दवाओं की कीमतों में कमी एक पॉजिटिव कदम है, जो लाखों लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में मदद करेगा। सरकार के प्रयासों से उम्मीद है कि आवश्यक दवाएं और अधिक सस्ती हो जाएंगी, जिससे चिकित्सा सुविधाओं का लाभ अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सकेगा।
भारत की स्वास्थ्य नीति में सुधार और दवाओं की कीमतों में कमी के लिए ऐसे कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है, ताकि कोई भी व्यक्ति चिकित्सा सेवाओं से वंचित न रहे।