Teachers Fake PhD Degree: सेवा में पीएचडी करने वाले शिक्षकों की डिग्रियों में झोल, हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग को लगाई फटकार

Anita Khatkar
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Teachers Fake PhD Degree: चंडीगढ़: कॉलेजों में सेवा के दौरान PHD करने वाले नियमित और एक्सटेंशन लेक्चरर शिक्षकों की डिग्रियों में UGC के मानकों की अनदेखी के मामले पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव और उच्च शिक्षा निदेशक को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर मामला है, क्योंकि ऐसे शिक्षकों के हाथ में छात्रों का भविष्य है, जिनकी डिग्रियां ही संदेहास्पद हैं।

क्या है मामला?

हाइकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली डॉ. मंजू बाला ने अपनी सेवा समाप्ति के आदेश को चुनौती दी थी। मंजू बाला ने बताया कि वह एक्सटेंशन लेक्चरर के रूप में काम कर रही थीं और राजस्थान के चुरु स्थित एक यूनिवर्सिटी से Phd की थी। उनका दावा है कि उसी यूनिवर्सिटी से phd करने वाले अन्य नियमित शिक्षकों को इसका लाभ दिया गया, लेकिन उन्हें सेवा से हटा दिया गया।

अदालत ने मांगा संदेहास्पद डिग्रियों का ब्योरा

Highcourt ने पाया कि नियमित और एक्सटेंशन लेक्चरर की Phd डिग्रियां UGC के मानकों के अनुरूप नहीं हैं। कोर्ट ने शिक्षा विभाग से ऐसे शिक्षकों का ब्योरा तलब किया। सरकार ने माना कि बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षक हैं जिनकी डिग्रियां मानकों पर खरी नहीं उतरतीं।

जांच के नाम पर टालमटोल

हाईकोर्ट ने कार्रवाई का विवरण मांगा तो शिक्षा विभाग ने समय की मांग की। विभाग ने बताया कि एंटी करप्शन ब्यूरो को मामले की जांच सौंपी गई है, लेकिन जांच के परिणाम अब तक नहीं दिए गए। कोर्ट ने इसे बेहद दुखद बताते हुए कहा कि सरकार की लापरवाही से छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ रहा है। अगली सुनवाई में जिम्मेदार अधिकारियों की उपस्थिति अनिवार्य
हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग को निर्देश दिया है कि वह संदेहास्पद डिग्री वाले शिक्षकों की पूरी जानकारी और उनके खिलाफ की गई कार्रवाई का ब्योरा अगली सुनवाई में पेश करे। साथ ही, प्रधान सचिव और उच्च शिक्षा निदेशक को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का आदेश दिया गया है।

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छात्रों का भविष्य दांव पर, सख्ती बरतने के संकेत

अदालत ने यह भी कहा कि शिक्षा विभाग की लापरवाही से ऐसे शिक्षकों को बढ़ावा मिला है, जिनकी डिग्रियां मानकों के अनुरूप नहीं हैं। यह न केवल शिक्षा प्रणाली के लिए बल्कि छात्रों के भविष्य के लिए भी गंभीर खतरा है।

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