Haryana Politics : हरियाणा के चुनावी किस्से: बंसीलाल, चौटाला और हुड्डा की रोचक राजनीति का सफर,6 दिन, 6 महीने और 6 बार सीएम बनने का रिकॉर्ड से बॉथरूम में सीएम को बंद करने जैसे रोचक तथ्य

Anita Khatkar
By Anita Khatkar
Haryana Politics : हरियाणा के चुनावी किस्से: बंसीलाल, चौटाला और हुड्डा की रोचक राजनीति का सफर,6 दिन, 6 महीने और 6 बार सीएम बनने का रिकॉर्ड से बॉथरूम में सीएम को बंद करने जैसे रोचक तथ्य
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Haryana Politics : हरियाणा की राजनीति हमेशा से ही रोचक रही है, जिसमें बार-बार सत्ता का परिवर्तन, मुख्यमंत्रियों का बदलता चेहरा और चुनावी रणनीतियों की चौंकाने वाली कहानियां शामिल हैं। 1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा राज्य का गठन हुआ और तब से लेकर आज तक हरियाणा की राजनीति में कई दिलचस्प मोड़ आए हैं। 1966 से लेकर अब तक के 58 सालों के इस सफर में राज्य में कई मुख्यमंत्री बने, लेकिन इनकी कहानी सिर्फ सत्ता तक सीमित नहीं रही, बल्कि सत्ता में बने रहने के लिए इन नेताओं की जद्दोजहद ने हरियाणा के राजनीतिक इतिहास को अद्वितीय बना दिया है।

चौटाला: 6 दिन, 6 महीने और 6 बार सीएम बनने का रिकॉर्ड

हरियाणा की राजनीति में अगर किसी नेता का सबसे ज्यादा उल्लेख किया जाए तो वह हैं ओमप्रकाश चौटाला। चौटाला का नाम हरियाणा के मुख्यमंत्रियों में कई कारणों से इतिहास में दर्ज है। सबसे खास बात यह है कि चौटाला (Haryana Politics)ने अपने करियर में छह बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उनका कार्यकाल कभी भी स्थायी नहीं रहा। उनका सबसे छोटा कार्यकाल 1990 में मात्र 6 दिनों का रहा, जब वे 12 जुलाई से 17 जुलाई तक सीएम रहे। इसके बाद, उन्होंने 22 मार्च 1991 से 6 अप्रैल 1991 तक एक और कम समय का कार्यकाल संभाला।

हालांकि, चौटाला का सबसे बड़ा कार्यकाल 1999 से 2005 तक रहा, जिसमें उन्होंने हरियाणा की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। चौटाला का राजनीतिक सफर हमेशा उतार-चढ़ाव भरा रहा है, और वह सत्ता में बने रहने के लिए कई बार सफल भी हुए, लेकिन उनका नाम 6 दिन के मुख्यमंत्री के रूप में भी इतिहास में दर्ज है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा: सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड

दूसरी ओर, कांग्रेस के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा की राजनीति में एक स्थिर चेहरा पेश किया। हुड्डा ने 2005 से 2014 तक लगातार दस साल(Haryana Politics) तक मुख्यमंत्री रहते हुए हरियाणा के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सीएम का रिकॉर्ड बनाया। हुड्डा ने अपने कार्यकाल के दौरान हरियाणा के विकास और औद्योगिक वृद्धि को एक नई दिशा दी। उनके कार्यकाल में राज्य में राजनीतिक स्थिरता रही और उनके नेतृत्व में कांग्रेस को एक मजबूत आधार मिला।

बंसीलाल: बाथरूम में बंद मुख्यमंत्री और चार बार सत्ता में वापसी

हरियाणा की राजनीति में बंसीलाल का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। बंसीलाल की कहानी एक ऐसी है जो राजनीति के चौंकाने वाले पहलुओं को उजागर करती है। 1967 में जब हरियाणा की पहली विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने भगवत दयाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया था, तब बंसीलाल को विधानसभा में जाने से रोकने (Haryana Politics)का एक अनोखा किस्सा सामने आया। विधानसभा के एक अधिकारी ने उन्हें बाथरूम में बंद कर दिया ताकि वे बहुमत परीक्षण में भाग न ले सकें और भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिर जाए।

आखिरकार, 25 मार्च 1967 को राव बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने, लेकिन यह सरकार भी नौ महीने ही चल पाई। इसके बाद, 1968 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए और बंसीलाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन्होंने चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री के पद पर भी कार्य किया।

हरियाणा की राजनीतिक अस्थिरता: तीन बार राष्ट्रपति शासन

हरियाणा की राजनीति हमेशा से ही अस्थिर रही है, और इस अस्थिरता का प्रमाण तीन बार राष्ट्रपति शासन का लगना है। पहली बार, 1968 में हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था, जो कि 22 मई तक चला। इसके बाद 1977 में दूसरा राष्ट्रपति (Haryana Politics)शासन और फिर 1991 में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया। हरियाणा की राजनीति में उठापटक और सत्ता के संघर्ष ने राज्य को कई बार अस्थिर किया, लेकिन हर बार राजनीतिक बदलाव ने इसे एक नई दिशा दी।

देवीलाल, चौटाला और बंसीलाल के बीच राजनीतिक संघर्ष

हरियाणा की राजनीति में चौटाला परिवार का मुकाबला देवीलाल और बंसीलाल के परिवारों से हमेशा रहा है। देवीलाल और बंसीलाल दोनों ही हरियाणा के महत्वपूर्ण नेताओं में गिने जाते थे, जबकि चौटाला परिवार ने भी अपने दबदबे को बनाए रखने की (Haryana Politics)पूरी कोशिश की। 1998 में बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र सिंह ने भिवानी सीट से जीत हासिल की थी, जबकि उनके भाई रणबीर महेंद्रा और अजय चौटाला ने भी चुनाव लड़ा था। इस चुनावी संघर्ष ने हरियाणा की राजनीति को और अधिक रोचक बना दिया था।

हुड्डा और चौटाला परिवार के बीच बढ़ती खटास

2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सत्ता में आने के बाद चौटाला परिवार की राजनीति कमजोर होती चली गई। हुड्डा ने अपनी सियासी सूझबूझ से कांग्रेस के भीतर ही चौटाला परिवार और बंसीलाल परिवार को किनारे कर दिया। चौटाला और हुड्डा परिवार के बीच राजनीतिक खटास और वैचारिक मतभेद खुलकर सामने आए। 2014 और 2019 के चुनावों में भी कांग्रेस और चौटाला परिवार के बीच संघर्ष जारी रहा।

किरण चौधरी: बंसीलाल परिवार की तीसरी पीढ़ी

बंसीलाल परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप में किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी ने भी हरियाणा की राजनीति में कदम रखा। किरण चौधरी ने अपने पति सुरेंद्र सिंह की मृत्यु के बाद हरियाणा में राजनीति शुरू की और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर हुड्डा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस (Haryana Politics)से टिकट न मिलने पर किरण चौधरी भाजपा में शामिल हो गईं और अब भाजपा में सक्रिय राजनीति कर रही हैं। उनकी बेटी श्रुति चौधरी भी राजनीति में सक्रिय हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा से तोशाम सीट पर चुनाव लड़ेंगी।

हरियाणा की राजनीति का यह सफर न केवल सत्ता की खींचतान का है, बल्कि यह उस संघर्ष की भी कहानी है, जहां नेताओं ने हर संभव तरीके से सत्ता हासिल करने की कोशिश की। बंसीलाल, चौटाला और हुड्डा जैसे नेताओं ने हरियाणा की राजनीति को नए आयाम दिए और राज्य की दिशा तय की। अब देखना यह है कि 2024 के चुनावों में कौन-सी पार्टी सत्ता में वापसी करती है और हरियाणा की राजनीति का अगला अध्याय किस तरह से लिखा जाता है।

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