बीमार होते हुए भी Ritika Hooda ने जीता Gold, डेंगू को मात देकर बनाया इतिहास

Anita Khatkar
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Ritika Hooda : रोहतक: डेंगू के बावजूद साहस का प्रदर्शन करते हुए हरियाणा के रोहतक जिले की रितिका हुड्डा ने अदम्य साहस और जिद्द के बलबूते विश्व सैन्य प्रतियोगिता (World Military Championship) में Gold मेडल जीतकर अपनी मेहनत का लोहा मनवाया। 20 से 23 नवंबर तक अल्बानिया में आयोजित इस प्रतियोगिता में उन्होंने 75 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक हासिल किया।

डेंगू को दी मात

डेंगू से ग्रस्त होने के कारण Ritika Hooda की हालत इतनी खराब थी कि उनकी प्लेटलेट्स 28,000 तक गिर गई थीं। डॉक्टरों ने उन्हें यात्रा करने और कुश्ती में भाग लेने से सख्त मना किया था। परिजनों ने भी उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन रितिका की जिद्द और जुनून के आगे सब हार गए।

परिवार और देश का सपना पूरा किया

Ritika Hooda के पिता और भाई सेना में रहे हैं, जिससे उनके दिल में बचपन से ही सैन्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का सपना था। अपनी इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए रितिका हुड्डा ने रोहतक के छोटू राम स्टेडियम में कड़ी प्रैक्टिस की।

मां की खुशी और गर्व का क्षण

रितिका की मां नीलम हुड्डा ने बताया कि डेंगू की गंभीर हालत में भी रितिका ने हार मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने उसे बार-बार समझाया कि इस प्रतियोगिता में भाग लेना उसकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। लेकिन रितिका का जवाब हमेशा यही था कि यह मेरा सपना है और मैं इसे हर हाल में पूरा करूंगी। आज उसकी जीत ने पूरे परिवार को गर्व और खुशी से भर दिया है।

डेंगू के बीच रितिका का संघर्ष

जब रितिका कुश्ती लड़ रही थी, उस वक्त भी उसके सीने में दर्द था। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और हर चुनौती का डटकर सामना किया। उनकी इस लगन और मेहनत ने उन्हें गोल्ड मेडल तक पहुंचा दिया।

रोहतक का गौरव बनीं रितिका

रोहतक की मिट्टी में जन्मी और यहीं के छोटू राम स्टेडियम में प्रैक्टिस कर इस मुकाम तक पहुंचने वाली Ritika Hooda अब युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। उनकी सफलता से न केवल उनके परिजन, बल्कि पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है।

बीमार होते हुए भी Ritika Hooda ने जीता Gold, डेंगू को मात देकर बनाया इतिहास
बीमार होते हुए भी Ritika Hooda ने जीता Gold, डेंगू को मात देकर बनाया इतिहास

रितिका हुड्डा का संदेश: जुनून के आगे सब मुमकिन

Ritika Hooda की यह कहानी इस बात का सबूत है कि सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय के आगे बड़ी से बड़ी बाधा को भी पार किया जा सकता है। उन्होंने अपने जुनून से साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो बीमारी भी आपको अपने लक्ष्य से नहीं रोक सकती।

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