जींद जिले में पिल्लूखेड़ा गांव के प्रगतिशील किसान नवीन (Progressive farmer Naveen) ने गेहूं और धान की फसल के बीच में खाली रहने वाले खेत से घीया की खेती कर अपनी आमदनी बढ़ाई। घीया का उत्पादन लेने के बाद उसकी बेल को खेत में ही मिलाकर खाद के रूप में भी प्रयोग कर रहा है। जिससे अगली फसल में डीएपी व यूरिया खाद की मात्रा कम करके लागत भी घटाई।
ग्रेजुएट 28 वर्षीय नवीन (Progressive farmer Naveen) की घर की जमीन चार एकड़ है और छह एकड़ जमीन ठेके पर लेता है। परिवार का मुख्य व्यवसाय खेती ही है। पापा राममेहर और छोटे भाई विनोद के साथ मिलकर नवीन खेती करता है। पहले साल में केवल दो ही फसल गेहूं और धान का उत्पादन लेते थे। गेहूं की कटाई अप्रैल के पहले व दूसरे सप्ताह में हो जाती है। उसके बाद जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के पहले पखवाड़े में धान की फसल की रोपाई करते हैं। करीब ढाई से तीन माह तक खेत खाली रहता है।
साढ़े चार साल पहले नवीन (Progressive farmer Naveen) हिसार कृषि मेले में गया था। वहां कृषि विशेषज्ञों को मिश्रित खेती व अन्य विधियों के बारे में बताते हुए सुना। तभी उसे गेहूं की कटाई के बाद खाली खेत में सब्जी उगाने का सुझाव पसंद आया। उसके बाद मेले में लगे स्टाल से अच्छी किस्म के घीया के बीज लेकर आया। एक एकड़ में मेढ़ बनाकर घीया की बेल लगाई। जिससे उसे करीब एक लाख रुपये की बचत हुई। उसके बाद हर साल एक एकड़ में घीया की सब्जी उगाता है।

Progressive farmer Naveen : मार्च में तैयार करता है नर्सरी
नवीन ने बताया कि मार्च के पहले सप्ताह में वह नर्सरी तैयार करता है। जिसमें घीया की बेल को उगने और बढ़वार के लिए एक माह का समय मिल जाता है। जैसे ही अप्रैल में गेहूं कटते हैं, सिंचाई करके खेत को तैयार करता है। उसके बाद मेढ़ बनाकर उनके ऊपर घीया की बेल लगा देता है। मई में घीया का उत्पादन शुरू हो जाता है और 10 से 15 जुलाई तक उत्पादन जारी रहता है।
Progressive farmer Naveen: ट्रैक्टर-ट्राली में रखकर खुद बेचते हैं
मई व जून में घीया का भाव प्रति किलो 20 रुपये तक मिल जाता है। घीया बेचने के लिए मंडी पर निर्भर नहीं रहते हैं। ट्रैक्टर-ट्राली में घीया रखकर नवीन अपने भाई के साथ गांवों में जाकर बेचते हैं। जिससे कोई बिचौलियों नहीं होने से किसान को भाव अच्छा मिल जाता है और ग्राहक को भी ठीक भाव में ताजा सब्जी मिल जाती है।
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