Success Kisan story जींद : जींद के निडाना गांव की महिला प्रगतिशील किसान कमलेश पिछले 14 साल से जहर मुक्त (poison-free farming) खेती कर रही है। वहीं अहिरका गांव का किसान दलेराम जैविक खेती कर रहा है। दोनों किसानों को सरकर ने किसान दिवस के उपलक्ष्य में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार में कृषि एवं किसान कल्याण, पशुपालन एवं डेयरी मत्स्य पालन मंत्री श्याम सिंह राणा ने सम्मानित किया।
केवल सातवीं कक्षा तक पढ़ी कमलेश अपने जोगेंद्र के साथ मिलकर खेती करती हैं। जोगेंद्र पांचवीं कक्षा तक पढ़ा है। घर की पांच एकड़ जमीन है और तीन एकड़ जमीन ठेके पर लेते हैं। खेत में किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करते हैं। डीएपी और यूरिया की जगह देसी गाय के गोबर की खाद खेत में डालते हैं। फसल के ऊपर जिंक के घोल का स्प्रे करते हैं। जिससे फसल में लागत भी कम आती है और पारंपरिक खेती की तुलना में (poison-free farming) उत्पादन ज्यादा होता है।
कमलेश ने बताया कि साल 2010 में उनके खेत में कृषि वैज्ञानिक डा. सुरेंद्र दलाल (Dr surender Dalal) ने पाठशाला लगाई थी। जिसमें कीटनाशकों और अंधाधुंध रसायनाें के नुकसान बताते हुए इनके बगैर फसल में कीटों को नियंत्रित करके अच्छा उत्पादन लेने के तरीके बताए थे। तभी से उन्होंने कीटनाशकों व अंधाधुंध रसायनों का प्रयोग छोड़ दिया था। इस अभियान में अन्य महिला किसानों के साथ आसपास के गांवों में जाकर किसानों को जागरूक किया।

उनके बगैर रसायनों व कीटनाशकों के गेहूं की जींद शहर तक मांग रहती है। पहले कपास की खेती करते थे। लेकिन गुलाबी सुंडी के प्रकोप के चलते दो साल से धान की खेती कर रहे हैं। धान का उत्पादन भी अच्छा रहता है। फसल में बीमारी भी नहीं आती, जबकि दूसरे किसानों के खेत में कीटनाशकों के स्प्रे के बावजूद फसल में बीमारी आती है।
Kisan story : ठेके पर 70 एकड़ लेकर खेती करते हैं किसान दलेराम
अहिरका गांव के किसान दलेराम (Farmer Daleram) के पास घर की जमीन नहीं है। वह 70 एकड़ जमीन ठेके पर लेते हैं। पहले पारंपरिक तरीके से गेहूं व धान की खेती करते थे। कृषि वैज्ञानिक डा. सुभाष चंद्र के संपर्क में आने के बाद चार साल पहले जैविक खेती शुरू की। शुरुआत दो एकड़ से की। अब चार एकड़ में जैविक खेती शुरू कर दी है। गेहूं व धान के साथ-साथ सब्जियां भी उगा रहे हैं। गेहूं घर से ही 5500 रुपये प्रति क्विंटल बिक जाता है। धान भी मंडी में ले जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। कटाई के बाद धान को घर पर ही स्टाक करते हैं।
पिछले साल उनका 1121 धान छह हजार रुपये प्रति क्विंटल बिका था। दलेराम 10वीं कक्षा तक पढ़े हुए हैं। दलेराम ने बताया कि जैविक खेती में मेहनत तो ज्यादा है, लेकिन लागत कम करके ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं। जीवामृत घोल खुद खेत में तैयार करते हैं। खेत में गोबर की देसी खाद डालते हैं। हरी खाद के लिए ढांचा की बिजाई करते हैं। सब्जियां भी उगाते हैं, पूरे साल सब्जी मार्केट से नहीं खरीदनी पड़ती है। गांव के लोग खेत व उसके घर से ही सब्जी खरीद कर ले जाते हैं।
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