Op chautala jind connection : जींद : पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का जींद जिला से काफी गहरा जुड़ाव रहा है। चौटाला ने जींद जिला के दो विधानसभा क्षेत्रों नरवाना व उचाना से कुल पांच चुनाव लड़े, जिनमें से तीन चुनाव जीते। उनका अंतिम चुनाव जींद के उचाना कलां से रहा।
वास्तव में ओमप्रकाश चौटाला ने जींद को ही अपनी कर्म भूमि बनाया। अपने पिता चौधरी देवीलाल की तरह ही ओमप्रकाश चौटाला राजनीति में किसी एक क्षेत्र से बंध कर नहीं रहे। जींद जिला के बड़े नेता रहे शमशेर सिंह सुरजेवाला व बीरेंद्र सिंह को उनके गढ़ में आकर ही चौटाला ने ललकार और अपनी राजनीतिक जमीन को न सिर्फ मजबूत भी किया, इन नेताओं को हरा कर राजनीतिक समीकरण बदले। जींद जिला में हुई ओमप्रकाश चौटाला की रैलियों का कोई मुकाबला नहीं कर पाया।
सबसे पहले चौटाला चुनावी राजनीति के रूप में चौटाला ने 1993 में जींद जिला का रूख किया। उन्होंने 1993 में नरवाना उपचुनाव जीत कर अपनी राजनीतिक धमक दी। नरवाना विधानसभा क्षेत्र को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बना लिया। 1993 के बाद हालांकि 1996 के चुनाव में नरवाना विधानसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ और चौटाला तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन फिर भी उन्होंने नरवाना को नहीं छोड़ा। वर्ष 2000 के चुनाव में फिर से वापसी की और रणदीप सुरजेवाला को हरा दिया।
इसके बाद 2005 के चुनाव में वे रणदीप सुरजेवाला से हार गए। इसके बाद नरवाना आरक्षित विधानसभा क्षेत्र हो गया और उन्होंने नरवाना के स्थान पर उचाना को कर्मभूमि चुना। यहां 2009 के चुनाव में उन्हाेंने कांग्रेस के कद्दावर नेता बीरेंद्र सिंह को टक्कर दी और बहुत ही कड़े मुकाबले में बीरेंद्र सिंह को 621 मतों से हरा दिया। इससे उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र में नए समीकरण बने और इस सीट पर बीरेंद्र सिंह परिवार के साथ चौटाला परिवार की ताकत भी बराबर की हो गई।
हालांकि इसके बाद चौटाला चुनावी राजनीति में नहीं आ सके। यही कारण रहा कि 2019 के चुनाव में दुष्यंत चौटाला फिर से उचाना कलां से जीत गए। हालांकि वे इनेलो से अलग होकर जजपा के टिकट पर चुनाव लड़े।
Op chautala death : चौटाला आते तो बंद हो जाते थे रास्ते
40 वर्षों तक ओमप्रकाश चौटाला के साथ राजनीति करने वाले ईश्वर सिंह उझानिया बताते हैं, ओमप्रकाश चौटाला राजनीति में सबसे अनोखे थे। उनका कार्यकर्ताओं से प्रेम गजब था। वे कार्यकर्ताओं के नाम याद रखते थे। हजारों की भीड़ में भी कार्यकर्ता को नाम से पुकारते थे। यही कारण है कि सत्ता से बाहर होने के बाद भी उनके जींद आने पर भारी भीड़ उमड़ती थी। रास्ते जाम हो जाते थे।
जुबान के धनी थे चौटाला (op chautala) साहब
ओमप्रकाश चौटाला की पहली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे सुरेंद्र बरवाला बताते हैं कि उनकी जुबान ही लोहे की लकीर होती थी। 1987 के चुनाव से पहले हमारे घर आए थे। जब पिताजी को कहा था कि हलवा बनवा लें। उस चुनाव में नामांकन से दो घंटे पहले दूसरे उम्मीदवार का टिकट रद कर मुझे टिकट दिया और बरवाला से जीतने पर मंत्री मंडल में शामिल किया। उनकी पक्की जुबान के कारण ही कार्यकर्ता उनसे अटूट प्रेम करते थे।