Tirupati Mandir Prasad: तिरुपति मंदिर का प्रसाद: 200 साल पुरानी परंपरा और विवाद

Anita Khatkar
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Tirupati Mandir Prasad: तिरुपति बालाजी मंदिर का प्रसाद, खासकर लड्डू, न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह 200 साल पुरानी परंपरा का भी प्रतिनिधित्व करता है। हाल ही में, आंध्र प्रदेश की राजनीति में इस प्रसाद को लेकर गंभीर आरोप और विवाद उत्पन्न हुए हैं। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की सरकार पर तिरुपति प्रसाद में जानवरों की चर्बी के उपयोग का आरोप लगाया है। इस मामले को लेकर जब लड्डुओं के नमूने जांच के लिए भेजे गए, तो उनमें मिलावट की पुष्टि हुई, जिससे श्रद्धालुओं में चिंता बढ़ गई है।

Tirupati Mandir Prasad: प्रसाद की अनोखी विधि

तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद को दित्तम नामक विशेष विधि से बनाया जाता है। यह एक सूची है, जिसमें सामग्री और उसके अनुपात का विवरण होता है। लड्डू पोटू, जिसे प्रसाद तैयार करने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है, प्रतिदिन लगभग 8 लाख लड्डू बनाता है। इसमें बेसन, काजू, इलायची, घी, चीनी, मिश्री और किशमिश का उपयोग किया जाता है। हर दिन यहां 10 टन बेसन और चीनी, 700 किलोग्राम काजू, 150 किलोग्राम इलायची, और 300-400 लीटर घी का उपयोग होता है।

Tirupati Mandir Prasad: रसोइयों की मेहनत

Tirupati Mandir Prasad: तिरुपति मंदिर का प्रसाद: 200 साल पुरानी परंपरा और विवाद
Tirupati Mandir Prasad: तिरुपति मंदिर का प्रसाद: 200 साल पुरानी परंपरा और विवाद

लड्डू पोटू में 620 रसोइये कार्यरत हैं, जिनमें से 150 स्थायी और 350 ठेका कर्मचारी हैं। ये सभी मिलकर लाखों लड्डू तैयार करते हैं, जो भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक बन जाते हैं। यहां के रसोइयों की मेहनत और परिश्रम ने तिरुपति लड्डू को एक विशेष पहचान दी है।

Tirupati Mandir Prasad Types: लड्डू के प्रकार

तिरुपति मंदिर में विभिन्न प्रकार के लड्डू बनाए जाते हैं, जैसे:

प्रोक्तम लड्डू: 60-70 ग्राम का, जो नियमित भक्तों को दिया जाता है।

अस्थानम लड्डू: विशेष त्योहारों पर 750 ग्राम का, जिसमें अधिक काजू और बादाम होते हैं।

कल्याणोत्सवम लड्डू: विशेष भक्तों को दिया जाने वाला लड्डू।

Tirupati Mandir Prasad:
परंपरा और रहस्य

तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने 1803 में बूंदी को प्रसाद के रूप में बांटने की शुरुआत की, लेकिन 1940 में लड्डू की परंपरा शुरू हुई। इसके बाद, 2001 में “दित्तम” में आखिरी बार बदलाव किया गया। तिरुपति मंदिर की कई रहस्यमय विशेषताएं भी हैं, जैसे भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति पर लगे असली बाल और गर्भगृह में मूर्ति की अद्भुत स्थिति। गर्भगृह में मूर्ति बीच में दिखाई देती है, लेकिन बाहर निकलने पर दाहिनी ओर दिखती है।भगवान की मूर्ति के कान के पास सुनने पर समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देती है। मंदिर में हमेशा एक दीपक जलता रहता है, जिसमें कभी भी तेल या घी नहीं डाला जाता। भगवान की मूर्ति से श्रृंगार हटाने के बाद उनके हृदय पर मां लक्ष्मी की आकृति दिखाई देती है।

इन रहस्यमय पहलुओं और विशेष प्रसाद के साथ, तिरुपति बालाजी मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का केंद्र बन चुका है।

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