Nisha Hadwa : हरियाणा की ड्राइवर छोरी : पिता बिमार हुए तो बेटी ने संभाला गाड़ी का स्टेयरिंग, जींद की निशा बनी समाज और लड़कियों के लिए बनी प्रेरणा का स्त्रोत

Anita Khatkar
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जींद : हरियाणा की ड्राइवर छोरी। सफीदों के गांव हाडवा की निशा (Nisha Hadwa) । मेहनत ही उसका धर्म है। आदमी यानि मर्दों की कार्यशैली में घर के सब काम करती है और सड़क पर अनुशासित व सहानुभूति होकर गाड़ी का स्टेयरिंग थाम कर निकलती है। निशा के पिता की नसें जाम हो गई तो बेटी ने पिता की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर ले लिया और गाड़ी चलाने लगी है। वह किराये पर गाड़ी में सामान ढोने की बुकिंग करती है। सफीदों के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेकर नौकरी के लिए किसी कोचिंग सेंटर में जाने की बजाय निशा ने खुद का स्टार्टअप शुरू किया। निशा समाज और दूसरी बेटियों के लिए प्रेरणा बनी है।

जीं हां। निशा (Nisha Hadwa) की मां सुमनलता ने बताया कि नीशा ने छठी कक्षा से ही घर के कामकाज में रुचि लेनी शुरू कर दी थी। वह मेहनती है, निडर है, ईमानदार है। अच्छे संस्कार उसकी पहली पहचान हैं। उन्होंने बताया कि निशा खेत के सभी कामों के अलावा भैंसों के लिए चारा लाने, काटने, चारा डालने, दूध दूहने व कोई पशु बेकाबू हो जाए तो उसे काबू करने तक के काम बखूबी करती है। उसने लोन पर किराया कमाने के लिए एक टाटा-एस व एक महिंद्रा पिक-अप दो वाहन लिए हैं।

साहसी मां ने बेटी (Nisha Hadwa) को बनाया मेहनती : एक को वह खुद तो दूसरे को उसका भाई मनदीप चलाता है। उसकी मां सुमनलता से जब पूछा गया कि जवान बेटी वाहन को किराए के लिए लेकर घर से निकलती है तो कोई संदेह, कोई संकोच नहीं होता. इस पर, जरूरत पड़ने पर खुद भी गाड़ी चला लेने वाली सुमनलता का कहना था कि बेटी में दम हो और उसके संस्कार अच्छे हों तो किसी की हिम्मत नहीं कोई छू ले. इसलिए सब कुछ ठीक चल रहा है और सब कुछ गौरवपूर्ण है. उसने बताया की नीशा के पापा मुकेश देशवाल के दोनों पैरों की नस जाम हो गई थी. तो वह बिस्तर पर आ गए थे।

Nisha Hadwa : हरियाणा की ड्राइवर छोरी : पिता बिमार हुए तो बेटी ने संभाला गाड़ी का स्टेयरिंग, जींद की निशा बनी समाज और लड़कियों के लिए बनी प्रेरणा का स्त्रोत

Nisha Hadwa : हरियाणा की ड्राइवर छोरी : पिता बिमार हुए तो बेटी ने संभाला गाड़ी का स्टेयरिंग, जींद की निशा बनी समाज और लड़कियों के लिए बनी प्रेरणा का स्त्रोत

मजबूरियों ने हौसलों को दिए पंख: उनके पास मात्र पौने दो एकड़ जमीन है. ऐसी स्थिति में निशा की लग्न और पारिवारिक मजबूरियों ने उसके हौसलों को पंख लगा दिए और आज स्थिति यह है कि गांव में शुरू में जो लोग बेटी को मर्दों जैसे काम करते देख मन ही मन निंदा करते थे. वहीं, लोग आज निशा पर गर्व व्यक्त करते हैं. निशा ने बताया कि उसमें खुद की मेहनत से कुछ करने का जुनून है और इस जुनून को हवा उसकी मां ने हौसले के रूप में दी है. निशा कहती है कि वह ग्रेजुएट है. कोई ठीक सी सरकारी नौकरी मिले तो उसे परहेज भी नहीं लेकिन नौकरी की उम्मीद में वह अपनी मेहनत की लीक से नहीं हटेगी. उसने बताया कि उसका पहला सपना अपनी कमाई से थार गाड़ी लेने का है. वह पूरा होगा तो अगला लक्ष्य बनाएगी।

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