Soil test : किस खेती के लिए अनुकूल है जींद की धरती, किसान कैसे फ्री में करवाएं मिट्टी की जांच, बढ़ा सकते हैं आय

Sonia kundu
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जींद जिले में उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग व ट्यूबवैल का पानी भूमि का स्वास्थ्य (jind Soil test) बिगाड़ रहा है। जिला की कृषि योग्य भूमि में अधिकतर पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है। किसानों को सिर्फ पोषक तत्वों की जानकारी है। भूमि के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों विद्युत चालकता और हाइट्रोजन क्षमता की जानकारी नहीं है। यह दोनों ही तत्व पौधों द्वारा पोषक तत्वों काे ग्रहण करने में मददगार हैं।

किसान सिर्फ नाइट्रोजन व फासफोरस की पूर्ति के लिए ही उर्वरक डाल रहे हैं। अन्य तत्वों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। इसके बावजूद किसान मिट्टी की जांच के प्रति जागरूक नहीं है। कृषि विभाग द्वारा मिट्टी की जांच निश्शुल्क की जाती है। यह जांच करवा कर किसान फसल का उत्पादन, गुणवत्ता के साथ आय बढ़ा सकते हैं। जिला की अधिकतर भूमि में ओर्गेनिक कार्बन की मात्रा 0 .4 से कम है, जबकि यह इससे अधिक होनी चाहिए।

जिला में करीब पांच लाख एकड़ भूमि कृषि (jind Soil test) योग्य है। हर साल व्यक्तिगत स्तर पर करीब तीन हजार किसान ही मिट्टी की जांच करवाने आते हैं। जबकि कृषि विभाग द्वारा चलाए जाने वाले अभियान के तहत करीब डेढ़ लाख किसानों के खेत से मिट्टी के सैंपल आते हैं। यह कुल कृषि योग्य भूमि का महज 30 प्रतिशत है। जबकि किसान मिट्टी की जांच करवा कर जरूरत के अनुसार पोषक तत्व दे कर फसल की गुणवत्ता व उत्पादन बढ़ा सकते हैं। इससे उनकी आय भी बढेगी।

jind Soil test : ऐसे लें खेत से मिट्टी के नमूने

खेत से मिट्टी के नमूने (soil samples from field) लेने के लिए विशेष सावधानियां बरतने की जरूरत है। सबसे पहले खेल की मेड़ से दस फुट अंदर की ओर से ही नमूने लें। सतह से छह इंच तक की मिट्टी का नमूना लिया जाना चाहिए। ऐसे नमूने खेत में चारों तरफ से चार से पांच जगह से मिट्टी लें और इसे अच्छी प्रकार से मिला कर इससे करीब 400 ग्राम मिट्टी जांच के लिए प्रयोगशाला में लेकर जाएं। ध्यान रखें की पेड़ के नीचे, खाद के ढेर व खड़ी फसल वाले खेत से नमूना नहीं लिया जाए।

Jind's land is suitable for which farming, how farmers can get their soil tested for free, they can increase their income.
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यह होते हैं मिट्टी में पोषक तत्व

जिला भूमि परीक्षण अधिकारी डा. संत कुमार मलिक (Dr. Sant Kumar Malik) के अनुसार मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटास, सल्फर, जिंक, आयरन, मैग्निज, कापर होते हैं। इसके अलावा विद्युत चालकता (ईसी) व हाइट्रोजन क्षमता / खारी अंग (पीएच) भी महत्वपूर्ण होते हैं। उन्होंने कहा कि नाइट्रोजन व फास्फोरस की पूर्ति के लिए किसान यूरिया व डीएपी खाद डालते हैं, लेकिन अन्य तत्वों के लिए कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

साथ ही ईसी व पीएच जैसे महत्वपूर्ण कारक हैं। पीएच का आदर्श स्तर सात होना चाहिए। जबकि इसका स्तर स्तर आठ से अधिक आ रहा है। ऐसे में यह भूमि के बिगड़ते स्वास्थ्य की निशानी है। इसके लिए जांच करने पर ही किसान को सही उपचार बताया जा सकता है।

underground water testing : भूमिगत पानी की जांच भी जरूरी

मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए ट्यूबवैल के पानी की जांच भी जरूरी है। पानी में कई प्रकार के ऐसे तत्व होते हैं, जो मिट्टी के स्वास्थ्य को खराब करते हैं। ऐसे में इसका उपचार किया जा सकता है। यदि भूमिगत पानी सोडियम कार्बोनेट की मात्रा अधिक है तो इसके लिए जिप्सम का प्रयोग किया जा सकता है। सोडियम कार्बोनेट का मानक एक होने पर प्रति एकड़ प्रति सिंचाई 30 किलोग्राम जिप्सम खेत दिया जाना चाहिए, लेकिन मिट्टी व पानी की जांच करके ही इसका उपचार किया जा सकता है। किसान अपने स्तर पर कोई भी तत्व नहीं डालें।

जिंक की कमी (zinc deficiency) पहचान सकते हैं
खेत में जिंक की कमी होने पर फसल में इसका असर दिखता है। हालांकि यह मिट्टी की जांच का विकल्प नहीं है, लेकिन किसान साधारणतौर पर इसको जांच सकते हैं। धान व गेहूं की फसल में हर दूसरे-तीसरे पत्ते पर लोहे के जंग की तरह के लाल निशान दिखते हैं।

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पराली खेत में मिलाने पर आएगा पीलापन
डा. संत कुमार मलिक बताते हैं कि अभी किसान धान के खेत में गेहूं की बिजाई कर रहे हैं। काफी किसानों ने धान की पराली को खेत की मिट्टी में मिला दिया है। इससे शुरूआती समय में गेहूं के पौधों में पीलापन आ सकता है। इससे घबराने की जरूरत नहीं है। शुरूआती समय में जब पराली के अवशेष मिट्टी में मिलते हैं तो इसका असर आता है। यह सामान्य प्रक्रिया है। इसके बाद यह पराली पौधों को खुराक देती है।

कृषि के लिए मिट्टी का स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण कारक है। इसको गंभीरता से लिया जाना चाहिए। किसान को हर तीन साल में मिट्टी की जांच करवानी चाहिए। इसके लिए किसान सीधे लैब में मिट्टी के नमूने ला सकता है। इससे मिट्टी में जिन तत्वों की कमी है, उनकी पहचान कर पूरी की जा सकती है। इसके लिए किसान को जागरूक होना होगा। बिना जांच के अंधाधुंध उर्वरकों के प्रयोग से खेत काे लाभ होने की बजाय नुकसान होता है।
—डा. संत कुमार मलिक, भूमि परीक्षण अधिकारी, कृषि विभाग जींद,

 

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