Kashmir Conflict: कश्मीर मुद्दे पर हर साल संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में आवाज उठाने वाले पाकिस्तान को इस बार अपने सबसे करीबी सहयोगी तुर्किए से बड़ा झटका लगा है। तुर्किए के राष्ट्रपति रेसीप तईप एर्दोगन, जिन्होंने पिछले कई वर्षों से कश्मीर के मुद्दे को लगातार उठाया था, इस साल अपने भाषण में कश्मीर का जिक्र तक नहीं किया। पाकिस्तान, जो इस मंच पर कश्मीर के मुद्दे को उठाने के लिए एर्दोगन पर निर्भर रहा है, अब चुप्पी साधे बैठा है।
Kashmir Conflict: एर्दोगन का बदलता रुख
वर्ष 2019 में, जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया, तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगन ने पाकिस्तान का जोरदार समर्थन करते हुए कहा था कि जब तक कश्मीर मुद्दे का समाधान नहीं होता, दक्षिण एशिया में शांति स्थापित नहीं हो सकती। उन्होंने कश्मीर की तुलना गाजा पट्टी से करते हुए इसे संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के आधार पर हल करने की मांग की थी। लेकिन इस बार, एर्दोगन ने अपने भाषण में गाजा का मुद्दा तो उठाया, मगर कश्मीर पर एक भी शब्द नहीं कहा।
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पाकिस्तान को पहले मिला था मलेशिया से समर्थन
सिर्फ तुर्किए ही नहीं, मलेशिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने भी 2019 में UNGA में भारत पर कश्मीर को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। लेकिन महाथिर के बाद मलेशिया के नए नेतृत्व ने कश्मीर पर पाकिस्तान को किसी प्रकार का समर्थन नहीं दिया। इस साल भी मलेशिया से कश्मीर मुद्दे पर कोई बयान आने की संभावना नहीं है। ऐसे में पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ा झटका है कि कश्मीर पर उसके अंतरराष्ट्रीय सहयोगी अब पीछे हट रहे हैं।
Kashmir Conflict: ब्रिक्स में तुर्किए की दिलचस्पी का असर
विशेषज्ञों का मानना है कि एर्दोगन के इस बदले हुए रुख के पीछे एक बड़ी रणनीति हो सकती है। तुर्किए, BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) में शामिल होने की इच्छा रखता है और इसके लिए उसे भारत के समर्थन की जरूरत है। Kashmir Conflict पर भारत के खिलाफ बोलना तुर्किए की ब्रिक्स में प्रवेश की आकांक्षाओं में बाधा बन सकता था। यही कारण है कि तुर्किए के पीएम Recep Tayyip Erdoğan ने इस बार कश्मीर पर चुप्पी साधने का फैसला किया।
Kashmir Conflict: भारत-तुर्किए संबंधों में आई नरमी
पिछले वर्ष नई दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान एर्दोगन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद से ही दोनों देशों के संबंधों में नरमी आई है। इसके पहले, कश्मीर मुद्दे को लेकर तुर्किए के तीखे बयानों के कारण भारत ने तुर्किए के साथ रक्षा और व्यापारिक सहयोग को धीमा कर दिया था। लेकिन अब दोनों देशों के बीच संबंधों को फिर से मजबूती मिलने के संकेत हैं।
Kashmir Conflict: पाकिस्तान के लिए बढ़ी मुश्किलें
तुर्किए द्वारा कश्मीर मुद्दे पर अपने समर्थन को पीछे खींच लेने से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय स्थिति और कमजोर हो गई है। पहले से ही आर्थिक संकट और आंतरिक अस्थिरता से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह बड़ा कूटनीतिक झटका है। हर साल संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच पर कश्मीर का मुद्दा उठाकर अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की उसकी कोशिश अब नाकाम होती दिख रही है।
Kashmir Conflict: क्या अब पाकिस्तान को मिलेगी कोई अंतरराष्ट्रीय मदद?
अब यह सवाल उठने लगा है कि Pakistan को भविष्य में कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंच से कोई समर्थन मिलेगा या नहीं। तुर्किए और मलेशिया जैसे देशों के पीछे हटने से यह संभावना और कम हो गई है। इसके अलावा, पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसकी गिरती साख भी इसे और कठिन बना रही है।
Kashmir Conflict: कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान को झटका
संयुक्त राष्ट्र महासभा में तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगन द्वारा कश्मीर का मुद्दा न उठाना स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका है। एर्दोगन का यह कदम दर्शाता है कि तुर्किए अब अपनी विदेश नीति में बदलाव ला रहा है और कश्मीर के मुद्दे पर भारत के खिलाफ बोलने से बच रहा है। इससे पाकिस्तान की रणनीति कमजोर हुई है और उसके लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाना और मुश्किल हो गया है।
पाकिस्तान के लिए यह समय आत्ममंथन का है, क्योंकि कश्मीर को लेकर उसके अंतरराष्ट्रीय सहयोगी अब उसे वह समर्थन नहीं दे रहे जो पहले मिलता था और कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है जिसपर भारत कभी भी पाकिस्तान को बहस में आगे नहीं बढ़ने देगा।