Abhay vs Dushyant chautala : भतीजे दुष्यंत के सामने ताल ठोकेंगे अभय चौटाला, देवीलाल की राजनीतिक विरासत की सियासी जंग तेज, उचाना बनी हॉट सीट

Anita Khatkar
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Abhay vs Dushyant chautala :हरियाणा की सियासत में एक बार फिर चौटाला परिवार के भीतर (Abhay vs Dushyant chautala) राजनीतिक संघर्ष तेज हो गया है। इनेलो नेता अभय चौटाला इस बार अपने भतीजे और जजपा नेता दुष्यंत चौटाला के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोकने की तैयारी कर रहे हैं। यह मुकाबला न सिर्फ चाचा-भतीजे के बीच होगा, बल्कि ताऊ देवीलाल की राजनीतिक विरासत को संभालने की भी एक महत्वपूर्ण लड़ाई मानी जा रही है।

अभय चौटाला की दो सीटों से चुनाव लड़ने की योजना

अभय चौटाला ने इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव(Abhay vs Dushyant chautala) में दो सीटों से चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं। ऐलानाबाद से वह वर्तमान में विधायक हैं और इनेलो ने उन्हें यहां से फिर से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। हालांकि, अब चर्चा है कि वह उचाना कलां से भी चुनाव लड़ सकते हैं, जहां से उनके भतीजे दुष्यंत चौटाला मैदान में हैं। इस संबंध में अभय चौटाला ने कहा है कि वह दो स्थानों से चुनाव लड़ेंगे और दूसरी सीट का चयन पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाएगा।

उचाना कलां क्षेत्र जींद का हिस्सा है, जो इनेलो का पुराना गढ़ रहा है। इस सीट पर दुष्यंत चौटाला पिछले चुनाव में विजयी रहे थे और अब दोनों नेताओं के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना है।

दुष्यंत और अभय के बीच पुरानी खटास

चाचा-भतीजे के बीच लंबे समय से खटास रही है। दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला के बीच सार्वजनिक मंचों पर और विधानसभा में तीखी बहसें हो चुकी हैं। दुष्यंत चौटाला जजपा के उम्मीदवार के रूप में उचाना से फिर से मैदान में हैं और इस बार कांग्रेस से चौधरी बृजेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इससे यह सीट सियासी नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण हो गई है।

इनेलो-बसपा गठबंधन से नई उम्मीदें

इनेलो और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के बीच गठबंधन होने के बाद अभय चौटाला को अपने समर्थन आधार में इजाफे की उम्मीद है। वहीं, जजपा के कमजोर संगठन और ओमप्रकाश चौटाला की बढ़ती उम्र को देखते हुए इनेलो को सहानुभूति वोट मिलने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में, अभय चौटाला अपने भतीजे के खिलाफ उचाना कलां से चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं और यह मुकाबला बेहद रोचक होता नजर आ रहा है।

ताऊ देवीलाल की विरासत की जंग

अभय चौटाला के उचाना से चुनाव लड़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण ताऊ देवीलाल की राजनीतिक विरासत को संभालने की जंग है। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला पहले ही अभय चौटाला को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर चुके हैं। ऐसे में, अगर अभय अपने भतीजे दुष्यंत चौटाला को उचाना कलां से हराते हैं, तो न केवल इनेलो की पकड़ जींद क्षेत्र में मजबूत होगी, बल्कि देवीलाल की विरासत पर भी उनका दावा और पुख्ता हो जाएगा।

दूसरी ओर, दुष्यंत चौटाला के लिए यह चुनाव उनके राजनीतिक वजूद को बचाने की लड़ाई बन चुका है। जजपा के कमजोर होते संगठन के बीच, उन्होंने अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में किए गए विकास कार्यों के दम पर मतदाताओं से वोट की अपील की है।

उचाना कलां: हरियाणा की हॉट सीट

उचाना कलां सीट इस बार हरियाणा की सबसे चर्चित सीटों में से एक है। जाट (Abhay vs Dushyant chautala)बाहुल्य इस विधानसभा क्षेत्र का ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण है और यहां देवीलाल परिवार और बीरेंद्र सिंह परिवार के बीच टक्कर देखने को मिलती रही है। 2009 में ओमप्रकाश चौटाला ने इस सीट से चुनाव जीतकर बीरेंद्र सिंह को हराया था।

इसके बाद 2014 में बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता भाजपा के टिकट पर विधायक बनी थीं। हालांकि, 2019 के चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने प्रेमलता को हराकर इस सीट से जीत दर्ज की थी।

इस बार भाजपा ने यहां ब्राह्मण समुदाय के नेता देवेंद्र अत्री को उम्मीदवार बनाकर चुनावी समीकरणों को और रोचक बना दिया है। भाजपा ने गैर-जाट चेहरे को उतारकर एक नई रणनीति तैयार की है, जिसका सीधा असर चुनाव परिणाम पर दिखने की संभावना है।

रोचक मुकाबले की संभावना

इस बार उचाना कलां में भाजपा, जजपा, कांग्रेस और इनेलो के बीच मुकाबला देखने को मिल सकता है। भाजपा ने जहां देवेंद्र अत्री को मैदान में उतारा है, वहीं कांग्रेस की ओर से पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह है। इसके अलावा वीरेंद्र घोगड़ियां भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर इस चुनाव में ताल ठोक रहे हैं, जिससे मुकाबला और दिलचस्प हो गया है।

पिछले चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने 92,504 वोट हासिल कर भाजपा(Abhay vs Dushyant chautala) की प्रेमलता को 47,452 वोटों से हराया था। प्रेमलता को 45,052 वोट मिले थे। कांग्रेस के उम्मीदवार बलराम को मात्र 4,972 वोट मिले थे और वह पांचवें स्थान पर रहे थे।

उचाना कलां विधानसभा सीट पर इस बार का चुनाव सिर्फ क्षेत्रीय विकास और जातीय समीकरणों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देवीलाल की राजनीतिक विरासत को लेकर चौटाला परिवार के भीतर की सियासी लड़ाई का भी अहम हिस्सा बन गया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार उचाना कलां में कौन बाजी मारता है और हरियाणा की सियासत में नए समीकरण किस दिशा में जाते हैं।

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