Court Decision : चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए, कमलजीत सिंह एवं अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति जसजीत सिंह बेदी की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि जिला मजिस्ट्रेट या नामित अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना दर्ज की गई एफआईआर कानूनी रूप से अमान्य है।
मामला कमलजीत सिंह के खिलाफ सुरजन सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों से जुड़ा है। सुरजन सिंह ने दावा किया कि उनकी बेटी कुलदीप कौर से शादी की पूर्व शर्त के रूप में 25 लाख रुपये का दहेज मांगा गया था। इस आरोप के आधार पर 18 फरवरी, 2023 को पुलिस स्टेशन छाजली, जिला संगरूर, पंजाब में एफआईआर संख्या 16 दर्ज की गई थी।
Court Decision : याचिकाकर्ता का कानूनी तर्क
कमलजीत सिंह और अन्य ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि दहेज निषेध अधिनियम की धारा 8-ए के तहत जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के बिना दर्ज की गई एफआईआर अमान्य है। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के ‘राज्य, सीबीआई बनाम शशि बालासुब्रमण्यम और अन्य’ मामले का हवाला देते हुए कहा कि एफआईआर पंजीकरण सहित अभियोजन प्रक्रिया शुरू करने के लिए पूर्व मंजूरी अनिवार्य है।
Court Decision : न्यायालय की टिप्पणी और फैसला
न्यायमूर्ति जसजीत सिंह बेदी ने अपने फैसले में कहा कि दहेज निषेध अधिनियम की धारा 8-ए के अनुसार, जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के बिना किसी भी प्रकार का अभियोजन नहीं किया जा सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि “अभियोजन” शब्द में आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत शामिल होती है, जिसमें एफआईआर का पंजीकरण भी आता है। न्यायालय ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के ‘हरियाणा राज्य बनाम चौ. भजनलाल’ मामले का भी हवाला दिया, जिसमें उन परिस्थितियों को बताया गया है जिनके तहत कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है।
फैसले के अंत में, हाईकोर्ट ने कमलजीत सिंह और अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए एफआईआर संख्या 16, दिनांक 18 फरवरी, 2023, और धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत 12 जून, 2023 को दर्ज रिपोर्ट सहित सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द कर दिया।
Court Decision : मामले में कानूनी प्रतिनिधित्व
इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता श्री कंवल गोयल ने किया, जबकि पंजाब राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री प्रभदीप सिंह धालीवाल ने पैरवी की। इस मामले में एमिकस क्यूरी के रूप में श्री आरव गुप्ता प्रतिवादी संख्या 2, संभवतः शिकायतकर्ता की ओर से प्रस्तुत हुए।
निष्कर्ष :
यह फैसला दहेज के मामलों में अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी की कानूनी आवश्यकता को पुष्ट करता है और भविष्य में ऐसे मामलों में न्यायपालिका के समक्ष एक मिसाल बनेगा।