find my ancestors: 200 साल पुराने बही-खातों में छिपा पूर्वजों का इतिहास! सिद्धवट घाट की अनोखी परंपरा, पंडितों की पोथियों में दर्ज हैं पूर्वजों का लेखा-जोखा

Anita Khatkar
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find my ancestors: आज के डिजिटल युग में, जहां दुनिया भर का डाटा बड़े-बड़े सर्वरों और कंप्यूटरों में सहेजा जा सकता है, वहीं हमारे पूर्वजों की जानकारी के लिए हमें कंप्यूटर या इंटरनेट का सहारा नहीं लेना पड़ता। इसका उत्तर महाकाल की नगरी उज्जैन के सिद्धवट घाट पर मिलता है, जहां आज भी पंडे-पुजारी 200 साल पुराने बही-खातों की पोथियों में पूर्वजों का इतिहास संजोकर रखे हुए हैं। ये पंडित बिना किसी तकनीकी सहायता के, चुटकियों में आपकी पीढ़ियों (find my ancestors) की जानकारी आपको बता सकते हैं, वो भी केवल आपके और आपके शहर के नाम से।

find my ancestors: पितरों के तर्पण की प्रमुख स्थली

Ujjain का सिद्धवट घाट, क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित एक पवित्र स्थल है। यहां हर साल बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों का तर्पण करने के लिए आते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सिद्धवट घाट पर तर्पण करने से व्यक्ति को उतना ही पुण्य प्राप्त होता है जितना गयाजी में तर्पण करने से मिलता है। इस घाट की एक और खासियत है कि यहां आने वाले श्रद्धालु अपने पूर्वजों का इतिहास भी जान सकते हैं। सिद्धवट के पंडितों के पास रखी गई 200 साल पुरानी पोथियों में पीढ़ी दर पीढ़ी का लेखा-जोखा दर्ज है।

find my ancestors: बिना कंप्यूटर के पुरानी पोथियों से जानकारी मिलती है

Siddhavat Ghat के पंडित वर्षों से पीढ़ियों की वंशावली को संजोए हुए हैं। यहां आने वाले लोग केवल अपना नाम और शहर बताकर अपने पूर्वजों की पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। पंडित श्याम पंचोली बताते हैं कि आधुनिक युग में भी इन पोथियों का महत्व कम नहीं हुआ है। ये दस्तावेज न केवल धार्मिक कर्मकांडों में मदद करते हैं, बल्कि पारिवारिक और संपत्ति विवादों के निपटारे में भी सहायक सिद्ध हुए हैं। कुछ समय पहले कोर्ट में लंबित कई पारिवारिक और संपत्ति विवादों को इन पोथियों में दर्ज जानकारी के आधार पर सुलझाया गया है।

find my ancestors: प्राचीन वटवृक्ष की धार्मिक मान्यता

सिद्धवट घाट की एक और विशेषता यहां का प्राचीन वटवृक्ष है। यह वटवृक्ष चार प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, जहां वटवृक्ष का विशेष महत्व है। स्कंद पुराण में भी इस वटवृक्ष का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि इस वटवृक्ष को माता पार्वती ने लगाया था और यह धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु वटवृक्ष की पूजा-अर्चना कर अपने पितरों की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। हर साल पितृपक्ष के दौरान 16 दिनों तक यहां पितरों का तर्पण करने की परंपरा निभाई जाती है।

find my ancestors: पंडितों की पोथियों में दर्ज है वंशावली

सिद्धवट घाट के पंडितों के पास जो बही-खाते हैं, उन्हें वंशावली कहा जाता है। इसमें यजमानों की पीढ़ी दर पीढ़ी की जानकारी दर्ज होती है। जब कोई व्यक्ति यहां आता है, तो उसका नाम उसके पूर्वजों – पिता, दादा, परदादा – के साथ इन पोथियों में लिख लिया जाता है। यह परंपरा पिछले 200 वर्षों से चली आ रही है। यहां आने वाले तीर्थ यात्री न केवल पिंडदान और श्राद्ध का कर्मकांड करवाते हैं, बल्कि अपने पूर्वजों का विवरण भी देखते हैं। जब वे अपने पूर्वजों के हस्ताक्षर या उनके नाम पोथियों में दर्ज देखते हैं, तो उनकी खुशी और भावनाएं चरम पर होती हैं।

find my ancestors: गूगल नहीं, पंडित हैं जानकारी का स्रोत

सिद्धवट घाट पर पंडितों का कहना है कि आधुनिक युग में आप किसी भी जानकारी के लिए गूगल का सहारा ले सकते हैं, लेकिन अपनी वंशावली की जानकारी आपको केवल यहां के पंडितों से ही मिल सकेगी। Google पर आपके Ancestors का इतिहास उपलब्ध नहीं होगा। इस बात की पुष्टि करते हुए पंडित बताते हैं कि हमारे पूर्वजों ने इस ज्ञान को बही-खातों के रूप में सहेज रखा है, जिसे हम आज भी आगे बढ़ा रहे हैं।

find my ancestors: संपत्ति विवादों में भी आई मदद

पिछले कुछ वर्षों में, सिद्धवट घाट की इन पोथियों ने कई कानूनी मामलों में भी अहम भूमिका निभाई है। पंडितों द्वारा सहेजी गई वंशावली की जानकारी ने कोर्ट में लंबित पारिवारिक और संपत्ति विवादों के समाधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह साबित करता है कि आधुनिक तकनीकी युग में भी इन प्राचीन दस्तावेजों का महत्व कम नहीं हुआ है, बल्कि यह पुरानी परंपराएं हमारी सांस्कृतिक और पारिवारिक विरासत को सहेजने में मदद कर रही हैं।

find my ancestors free: परंपरा और आधुनिकता का संगम

उज्जैन के सिद्धवट घाट की यह परंपरा हमारे सांस्कृतिक धरोहर की समृद्धता को दर्शाती है। जहां एक ओर हम डिजिटल युग में हर जानकारी ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं, वहीं इस घाट पर आज भी पीढ़ियों की जानकारी पारंपरिक तरीके से सहेजी जाती है। यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक ढांचे को भी मजबूत बनाए रखने में मददगार साबित हो रही है। सिद्धवट घाट पर आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए यह स्थान केवल तर्पण का ही नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़ने का भी केंद्र है।

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