Health Insurance लेते समय ये 6 बातें रखें ध्यान, क्लेम देने खुद घर आएंगी बीमा कंपनियां

हेल्थ इंश्योरेंस करवाते समय न छुपाएं ये जानकारी

Sonia kundu
9 Min Read

Health insurance : कंपनियों से बीमा पॉलिसी लेना जितना आसान होता है,उतना ही मुश्किल होता है उनसे क्लेम करना । कई पॉलिसी धारकों की यह शिकायत रहती है कि बीमा कंपनी क्लेम का पैसा देने में आनाकानी कर रही हैं ।

 

मगर यहां पर जितनी गलती कंपनियों की है करीब-करीब उतनी ही गलती हमारी भी होती है क्योंकि पॉलिसी लेते वक्त ज्यादातर लोग ढेरों गलतियां करते हैं जिसकी वजह से उन्हें क्लेम मिलने में कई दिक्कतें आती हैं । पॉलिसी के नियम और शर्तों को हल्के में लेना ,उनकी जानकारी अच्छे से नहीं पढ़ना इस तरह की अनेकों गलतियां आमतौर पर लोग करते हैं ।

आइए आज जानते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस (health insurance) लेते समय किन 6 बातों का ध्यान रखना जरूरी है ।

पॉलिसी का चुनाव करना
सर्वप्रथम आपको अपने शहर के मुताबिक स्वास्थ्य बीमे का चुनाव करना चाहिए । कई इंश्योरेंस कंपनियां इलाके के हिसाब से पॉलिसी का दाम तय करती हैं। जैसे मेट्रो सिटीज यानी दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पॉलिसी का प्रीमियम ज्यादा होता है जबकि टियर 2 और टियर 3 जैसे छोटे शहरों में प्रीमियम सस्ता होता है। छोटे शहरों में मेडिकल का खर्चा बड़े शहरों की तुलना में काफी सस्ता होता है ।

 

अगर आप टियर 2 या टियर 3 में रहते हैं तो बीमा कंपनी से अपनी आवश्यकता अनुसार सिटी स्पेसिफिक इंश्योरेंस पॉलिसी की मांग कर सकते हैं। इसमें आपके इलाके के आस पास के शहरों के अस्पतालों को कंपनियों द्वारा जोड़ा जाता है। इससे आपका प्रीमियम भी काफी सस्ता हो जाएगा और आपको आपके नजदीक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होंगी ।

 

पॉलिसी (health insurance policy) को ध्यान से पढ़ना

हमें पॉलिसी के डॉक्यूमेंट को बेहद गहराई से पढ़ना चाहिए । पॉलिसी के नियमों में यह साफ-साफ लिखा होता है कि किस स्थिति में बीमा का पैसा मिलेगा और कब नहीं मिलेगा ।
वैसे तो पॉलिसी देते समय बीमा कंपनी ये सभी चीजें बता देती हैं किंतु यह ग्राहकों की भी जिम्मेदारी होती है कि पॉलिसी में लिखी सभी चीजें एक बार खुद से पढ़ लें और अगर कोई चीज समझ में नहीं आ रही है तो बीमा कंपनी से उसे अच्छे से समझ सकते हैं।

 

हर बीमा पॉलिसी 15 दिनों के फ्री लुक पीरियड में आती हैं। पॉलिसी लेने के बाद अगर कोई चीज नहीं जमती है तो आप फ्री लुक पीरियड में पॉलिसी कैंसिल करा सकते हैं और कंपनी से पैसे वापिस ले सकते हैं ।

 

उचित मूल्य का बीमा लेना

कई बार हम जरूरत से कम या फिर जरूरत से ज्यादा रकम की पॉलिसी ले लेते हैं। ज्यादा नुकसान कम रकम का बीमा लेने के बाद होती है। जब कोई मेडिकल इमरजेंसी आती है, तब क्लेम के समय मालूम पड़ता है कि बीमा के पैसे तो काफी कम हैं।विशेषज्ञ कहते हैं कि अपने पिछले 3 सालों का स्वास्थ्य खर्च के हिसाब से उसके दोगुने तक की रकम का बीमा ले सकते हैं । इसके अलावा परिवार में कितने सदस्य हैं ,उनकी सेहत को देखते हुए पॉलिसी का चुनाव कर सकते हैं ।

 

वहीं कई इंश्योरेंस पॉलिसी ऐसी होती हैं जिनमें क्लेम का एक तय फीसदी हिस्सा पॉलिसी होल्डर को देना होता है और बाकी का खर्चा बीमा कंपनी उठाती हैं। यह प्रावधान अक्सर उन लोगों की पॉलिसी में जोड़ा जाता है जिन्हें कोई खास तरह की बीमारी हो या नॉन नेटवर्क हॉस्पिटल में या मेट्रो शहरों में इलाज करा रहे हों या फिर वो सीनियर सिटीजन का इलाज करा रहे हो। इसको पेमेंट पॉलिसी भी कहते हैं । यह सामान्य बीमे से थोड़ा सस्ता होता है क्योंकि इसमें एक तय 10 या 20 प्रतिशत हिस्सा पॉलिसी होल्डर को देना होता है।

 

हॉस्पिटल में भर्ती होने पर कौन -कौन से खर्चे होंगे शामिल

सबसे जरूरी ध्यान रखने वाली बात यह है कि आपकी बीमा पॉलिसी में हॉस्पिटल में भर्ती होने पर कौन-कौन सा खर्च कवर होगा यह जरूर देख लें । जैसे कि डॉक्टर की फीस कवर होगी या नहीं ,डायग्नोस्टिक या ब्लड टेस्ट ,आईसीयू चार्ज ,सर्जरी का खर्चा, हॉस्पिटल रूम में भर्ती का किराया आदि ये सारे खर्चे उस कवर में शामिल हैं या नहीं । कई बार ऐसा होता है कि हॉस्पिटल में भर्ती होने से पहले भी टेस्ट ,एक्स रे,अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन आदि में बहुत खर्चा हो जाता है ।

 

एक अच्छी पॉलिसी में हॉस्पिटलाइजेशन से पहले का खर्च भी कवर होता है। इसमें डॉक्टर की विजिट , डायग्नोस्टिक टेस्ट और अन्य खर्चे शामिल होते हैं । इसी तरह हॉस्पिटल से छूटने के बाद भी मरीजों के लिए दवाइयों समेत कई छोटे-मोटे खर्चे होते रहते हैं । कई बीमा कंपनियां हॉस्पिटल से डिस्चार्ज के बाद 30 से 90 दिनों तक जो भी खर्चा आ रहा है उसे भी वापस करती हैं । इसके अलावा कई हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी फ्री हेल्थ चेकअप की सुविधा भी देती हैं ताकि कोई दिक्कत दिख रही हो तो उसे शुरुआती स्टेज में ही ठीक किया जा सके। इसमें कस्टमर और बीमा कंपनी दोनों का फायदा होता है ।

 

पॉलिसी में सब-लिमिट सबसे जरूरी क्यों होती है

सब लिमिट से जुड़ी हुई नियम और शर्तें हेल्थ इंश्योरेंस में सबसे अहम होते हैं । दरअसल बीमा कवर का पैसा अलग-अलग स्थितियों जैसे कि कोई खास बीमारी या कोई खास मेडिकल खर्च के नाम पर अलग अलग बांटा जाता है।जिस स्थिति पर अधिकतम जितने रुपए की सब लिमिट तय होती है , कंपनी उससे ज्यादा पैसा वापस नहीं करती है । यह जानकारी नहीं होने की वजह से लोग किसी बीमारी पर लिमिट से ज्यादा खर्च कर देते हैं और बाद में पूरा क्लेम ना मिलने से पछतावा होता है ।

 

कंपनी हॉस्पिटल रूम रेंट ,एंबुलेंस चार्ज ,डॉक्टर कंसल्टेशन फीस या किसी खास मेडिकल ट्रीटमेंट जैसे कि किडनी ट्रांसप्लांट इन सभी अलग-अलग सिचुएशन के हिसाब से अलग-अलग सब लिमिट तय करती हैं । सब लिमिट के साथ आने वाले प्लान अक्सर बाकी तरह के प्लान के मुकाबले सस्ते होते हैं, इसलिए अगर आप सिर्फ सस्ता प्रीमियम देखकर कोई हेल्थ प्लान ले रहे हैं तो सब- लिमिट के बारे में जरूर पता कर लें।

 

पॉलिसी लेते समय बीमारी या पुराना मेडिकल रिकॉर्ड ना छिपाएं

इसके अलावा पॉलिसी लेते समय अपनी बीमारी छुपाने की गलती कतई ना करें । कई लोग हेल्थ बीमा लेते समय बीमारी या अपना पुराना मेडिकल रिकॉर्ड छिपा लेते हैं ,उन्हें डर होता है कि सारी चीजें बताने से पॉलिसी नहीं मिलेगी या फिर उन्हें ज्यादा प्रीमियम देना पड़ेगा ।

 

बीमारी छिपाकर आपको हेल्थ प्लान तो मिल जाएगा बाद में जब बीमा क्लेम करने जाएंगे तो पैसा देने से पहले कंपनी डिटेल में जांच पड़ताल करती है और अगर उसे इस जांच पड़ताल में पता चलता है कि आपको पहले से कोई बीमारी थी और आपने उसकी जानकारी कंपनी को नहीं दी है तो कंपनी आपका पूरा क्लेम रद्द कर सकती है । उम्मीद करते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी यह जानकारी आपको अच्छी पॉलिसी खरीदने में मदद करेगी।

 

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