HKRN NEWS: हरियाणा कौशल रोजगार निगम की नियुक्तियों की जांच, हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव और सीईओ से मांगा जवाब

Anita Khatkar
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HKRN NEWS: हरियाणा में कौशल रोजगार निगम लिमिटेड (HKRNL) के माध्यम से की गई नियुक्तियां अब उच्च न्यायालय के जांच दायरे में आ गई हैं। मंगलवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव और HKRNL के CEO को अवमानना याचिका पर नोटिस जारी किया। यह याचिका इस आरोप के साथ दायर की गई थी कि राज्य के अधिकारियों ने जानबूझकर उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का उल्लंघन करते हुए अनुबंध के आधार पर नियुक्तियां की हैं।

याचिकाकर्ता ने लगाया ये आरोप

याचिकाकर्ता जगबीर मलिक ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार और उसके अधिकारियों ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों की अवहेलना की, जिनमें सार्वजनिक रोजगार में तदर्थवाद (Ad Hocism) को रोकने का निर्देश दिया गया था। याचिका में यह भी कहा गया है कि कोर्ट ने बार-बार स्थायी पदों पर नियुक्तियां करने की सलाह दी है, लेकिन राज्य सरकार ने hkrnl के माध्यम से अनुबंध के आधार पर लाखों पदों को भरने की योजना बनाई है।

यह मामला तब शुरू हुआ जब उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि अनुबंध या दैनिक वेतन पर केवल अस्थायी कार्यों के लिए नियुक्तियां की जाएं, लेकिन हाल ही में HKRN के तहत स्थायी पदों पर भी अनुबंध के आधार पर नियुक्तियों का विज्ञापन दिया गया है।

HKRNL के तहत नियुक्तियां

Hrkn / hkrn के तहत प्राथमिक शिक्षक, प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (TGT), स्नातकोत्तर शिक्षक (PGT), जूनियर इंजीनियर, फोरमैन, लैब टेक्नीशियन और रेडियोग्राफर समेत कई पद शामिल हैं। इन नियुक्तियों को उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन माना जा रहा है।

HKRN NEWS: हरियाणा कौशल रोजगार निगम की नियुक्तियों की जांच, हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव और सीईओ से मांगा जवाब
HKRN NEWS: हरियाणा कौशल रोजगार निगम की नियुक्तियों की जांच, हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव और सीईओ से मांगा जवाब

याचिकाकर्ता की मांग

याचिकाकर्ता ने मांग की है कि High Court के आदेशों का पालन करते हुए राज्य सरकार को स्थायी भर्ती प्रक्रियाओं की दिशा में कदम उठाने के लिए मजबूर किया जाए। इस मामले पर उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव और hkrnl के सह-अध्यक्ष विवेक जोशी और ceo अमित खत्री से जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।

उच्च न्यायालय का यह कदम राज्य के सार्वजनिक रोजगार की पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर महत्वपूर्ण है और यह इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि अदालतों ने बार-बार तदर्थ (AdHock) नियुक्तियों के खिलाफ दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

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