HKRN News: हरियाणा सरकार द्वारा अस्थायी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति तक सेवा सुरक्षा प्रदान करने के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी कर्मचारियों में संतोष की जगह निराशा का माहौल है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की सरकार ने यह कदम उठाते हुए HKRN के 1.20 लाख अस्थायी कर्मचारियों को जॉब सुरक्षा दी है, लेकिन इसका लाभ लेने वाले कर्मचारी कई कारणों से असंतुष्ट हैं।
डीए जीरो करने से नाराजगी
Hkrn कर्मचारियों की नाराजगी का मुख्य कारण महंगाई भत्ते (DA) को शुरू में जीरो कर देना है। इससे पहले भी गेस्ट टीचर्स के साथ ऐसा ही किया गया था, जिसके चलते यह फैसला कर्मचारियों को राहत पहुंचाने में विफल रहा है। Hrkn कर्मचारियों का कहना है कि सरकार द्वारा उठाए गए इस ऐतिहासिक कदम से जिस खुशी की लहर दौड़नी चाहिए थी, वह नदारद है। DA शून्य करने से कर्मचारियों को यह फैसला अधूरा और अनुचित लग रहा है।
50 हजार वेतन सीमा से कर्मचारियों में असंतोष
दूसरी बड़ी नाराजगी 50,000 रुपये मासिक वेतन की सीमा तय करने को लेकर है। इस एक्ट के अंतर्गत जिन कर्मचारियों का वेतन 50,000 रुपये से अधिक है, उन्हें जॉब सिक्योरिटी से बाहर रखा गया है। इससे कॉलेजों में कार्यरत एक्सटेंशन लेक्चरर्स और हरियाणा राज्य शिक्षा परियोजना परिषद में कार्यरत कर्मचारी, जिनका वेतन इस सीमा से अधिक है, खुद को वंचित महसूस कर रहे हैं।
Hkrn Employee का कहना है कि अगर कोई कर्मचारी 15-20 साल से सेवा में है और उसका वेतन 50 हजार रुपये से अधिक हो गया है, तो उसे भी जॉब सिक्योरिटी का लाभ मिलना चाहिए। वेतन की यह सीमा, खासकर उन कर्मचारियों के लिए, अनुचित है, जिन्होंने वर्षों तक सेवा दी है।
राज्य सरकार से संशोधन की मांग
HKRN कर्मचारियों का यह भी कहना है कि 50 हजार रुपये से अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है, ऐसे में सरकार को उनकी जॉब सिक्योरिटी पर विचार करना चाहिए। इससे सरकार के खजाने पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि ये कर्मचारी पहले से ही बेसिक पे और डीए ले रहे हैं।
सही दिशा में कदम, लेकिन अधूरी खुशी
HKRN कर्मचारियों का मानना है कि यदि सरकार इस एक्ट में संशोधन कर समकक्ष पद के न्यूनतम बेसिक पे के साथ DA भी देना शुरू करे, तो कर्मचारियों के बीच नाराजगी कम होगी और सरकार को इसका राजनीतिक लाभ भी मिल सकता है। वरना, यह ऐतिहासिक कदम अधूरा रह जाएगा और इसका असर भी सीमित हो सकता है।
अस्थायी कर्मचारियों की यह निराशा बताती है कि सरकार को नीतियों में बदलाव करते समय जमीनी हकीकत का अधिक ध्यान रखना होगा, ताकि सभी कर्मचारियों को समान रूप से इसका लाभ मिल सके।