Karsola teela : जींद जिले के जुलाना तहसील के गांव करसोला का इतिहास बहुत पुराना है। करसोला गांव का टीला हड़प्पा कालीन सभ्यता (Harappan civilization) के प्रमाण मिलने की गवाही दे रहा है, लेकिन इसकी पहचान होने के बाद भी 15 साल से इसके संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। करसोला गांव का यह टीला आध्यात्मिक रूप से भी विशेष महत्व रखता है। करसोला गांव तपस्वी महंत बाबा माडूनाथ की तपोस्थली भी रहा है। 50 के दशक में एक तपस्वी साधु इस गांव में पधारे, जो बाबा माडूनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
साधु महाराज ने गांव से बाहर अपना डेरा जमाया। जहां धीरे-धीरे श्रद्धालुओं का आना जाना हुआ। करसोला का इतिहास हड़प्पा काल से जुड़ा है। 2010 में महाराष्ट्र के पुरातत्व विभाग को इस ऐतिहासिक स्थल का पता चला। इसके बावजूद इस स्थल को सिर्फ संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। इसको संरक्षित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए।
पुरातत्व विभाग की टीम ने 2011 में यहां आकर खोदाई की। खोदाई का काम करीब छह महीने तक चला। इसमें पुरातत्व विभाग की टीम को हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले। उनके अनुसार यह गांव हड़प्पा सभ्यता के अंत से जुड़ा हुआ है। यहां चार तरह की शैली के बर्तन मिले, जिनमें सबसे ज्यादा चित्रित धुरसर पात्र के मिले।
जिसकी शुरुआत हड़प्पा सभ्यता के अंत में हुई थी। जब शोध का काम चल रहा था तो उसी समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बड़ी लड़की प्रोफेसर उपेंद्र सिंह 13 मार्च 2011 को यहां आई। शोध पूरा करने के बाद खोदाई वाली जगह को टीम ने इस जगह को पालीथिन से ढक कर इसे पुरातत्व विभाग की जमीन बताया था। इसके बावजूद आज तक इस टीले की ओर ध्यान नहीं दिया गया।
चहारदीवारी एवं लाइट लगवाने के लिए लिखा था पत्र
इस ऐतिहासिक टीले को सहेजने के लिए एवं इसमें मूलभूत सुविधा के लिए महंत बंशी ने प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था। पत्र में चहारदीवारी एवं स्ट्रीट लाईट लगवाने की मांग की गई थी। साथ-साथ में इसे ऐतिहासिक स्थाल बनाने की मांग की गई। लेकिन अभी तक पुरातत्व विभाग व सरकार ने इसकी कोई सुध नहीं ली है। रात को यहां पर अंधेरा छा जाता है। चहारदीवारी नहीं होने के कारण टीले से मिट्टी बरसात में बह गई है।
हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा है गांव का इतिहास : मोनू
गांव करसोला का इतिहास बहुत पुराना है। हड़प्पा सभ्यता के साथ भी गांव का इतिहास जुड़ा हुआ है। हड़प्पा सभ्यता से जुड़े इस गांव की जमीन पर महंत बाबा बंशी गिरी का डेरा है। डेरे में बाबा तपस्या करते हैं और गांव के साथ-साथ दूर-दराज के लोग यहां पर आते हैं। यहां पर पुरात्तव विभाग ने देखरेख करने के लिए एक चौकीदार को रखा हुआ है। इसके अलावा यहां पर सरकार ने कोई सुविधा नहीं दी है। हड़प्पा सभ्यता से जुड़े इस जमीन कर अस्तित्व सरकार की अनदेखी के चलते खतरे में है।
मोनू ग्रामीण युवा।
क्षेत्र को संरक्षण की आवश्यकता : महंत बाबा बंशी गिरी
हड़प्पा सभ्यता के साथ जुड़े इस गांव की जमीन पर तपस्या कर रहे महंत बाबा बंशी गिरी ने बताया कि वहीं आध्यात्मिक रूप से भी गांव का विशेष महत्व है। करसोला गांव तपस्वी महंत बाबा माडूनाथ की तपोस्थली भी रहा है। बाबा माडूनाथ ने गांव से बाहर अपना डेरा इसी जमीन पर बनाया। जहां धीरे-धीरे श्रद्धालुओं का आना जाना हुआ। ऐतिहासिक जमीन पर चहारदीवारी की आवश्यकता है। इस क्षेत्र के संरक्षण के लिए कोई प्रयास नहीं हो रहा।
टीले सहजने के लिए नहीं हो रहा काम : लाठर
करसोला गांव के पूर्व सरपंच राजपाल लाठर ने बताया कि इस ऐतिहासिक टीले को सहजने का काम सरकार द्वारा नहीं किया जा रहा है। पुरातत्व विभाग ने ऐतिहासिक जमीन को अपने अधीन ले लिया है रखरखाव के लिए अभी तक कोई गतिविधियां शुरू नहीं हो पाई है। विभाग की तरफ से केवल यहां पर एक चौकीदार तैनात है।
गांव से माडूनाथ के चले जाने के बाद 90 के दशक में एक महंत कौशल गिरि आए। उन्होंने यहां तप किया और बाबा माडूनाथ की मूर्ति स्थापना कराई। महंत कौशल गिरि ने यहां तपस्या शुरू की। 2007 में महंत कौशल गिरि ने यह डेरा अपने शिष्य बंसी गिरी महाराज को सौंप दिया। अब बाबा बंसी गिरी ही डेरे की देखरेख करते हैं।