Bank loan News : पिछले पांच वित्तीय वर्षों में भारतीय बैंकों ने 9.90 लाख करोड़ रुपये के ऋण बट्टे खाते में डाल दिए हैं। यह जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्रदान की गई है। इस महत्वपूर्ण खुलासे ने न केवल बैंकों की वित्तीय स्थिति पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि सरकार की वित्तीय योजनाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ा है।
ऋण वसूली में बड़ी असफलता
आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार, बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाली गई राशि से केवल 18% (1,85,241 करोड़ रुपये) की ही वसूली हो पाई है। इसका मतलब है कि बैंकों ने बट्टे खाते में डाले गए 81.30% ऋणों की वसूली में असफलता का सामना किया है।
वित्तीय वर्ष | बट्टे खाते में डाली गई राशि (लाख करोड़ रुपये) | वसूली गई राशि (करोड़ रुपये) | वसूली का प्रतिशत (%) |
2018-19 | 1.56 | 30,000 | 19.23 |
2019-20 | 2.35 | 42,000 | 17.87 |
2020-21 | 2.82 | 45,000 | 15.96 |
2021-22 | 1.90 | 38,241 | 20.12 |
2022-23 | 1.27 | 30,000 |
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की प्रमुख भूमिका
बट्टे खाते में डाली गई इस राशि में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा, 63% रही। इसके बावजूद, आरबीआई ने अभी तक उन शीर्ष कर्जदारों के नामों का खुलासा नहीं किया है, जिनके ऋण बट्टे खाते में डाले गए हैं।
सकल राजकोषीय घाटे पर प्रभाव
यदि इस राशि का उपयोग सकल राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए किया जाता, तो इसे 59% तक घटाया जा सकता था। 2023-24 में यह घाटा 16.54 लाख करोड़ रुपये अनुमानित था। यह आंकड़ा भारत की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
एनपीए और विलफुल डिफॉल्टर की समस्या
जब कोई ऋण 90 दिनों तक भुगतान नहीं हो पाता है, तो उसे गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) का दर्जा दिया जाता है। यदि कर्जदार जानबूझकर भुगतान नहीं करता, तो उसे विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है, और फिर उसका ऋण बट्टे खाते में डाल दिया जाता है।
बैंक इसे अपनी परिसंपत्ति खाते से हटा देते हैं, क्योंकि उस राशि की वसूली की संभावना बहुत कम होती है। सूचना के अधिकार के माध्यम से आरबीआई द्वारा यह जानकारी प्रदान की गई है।
यह रिपोर्ट न केवल बैंकिंग क्षेत्र की मौजूदा स्थिति को उजागर करती है, बल्कि सरकार और वित्तीय संस्थानों के लिए भी महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है। इसके साथ ही, यह मुद्दा आने वाले दिनों में और भी चर्चा का विषय बन सकता है।