Khudabaksh Library : पटना की खुदाबख्श लाइब्रेरी न केवल अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां एक अनमोल किताब की सुरक्षा व्यवस्था भी चर्चा का विषय है। इस विशेष पांडुलिपि की सुरक्षा व्यवस्था में Z+ सिक्योरिटी जैसी सुरक्षा उपाय किए गए हैं, जो इसे अत्यधिक मूल्यवान बनाते हैं।
कैसे सुरक्षित है यह किताब?
खुदाबख्श लाइब्रेरी में सुरक्षित रखी गई यह किताब 1400 साल पुरानी है और इसे हिरण की चमड़ी पर लिखा गया है। यह कुरान का एक अंश है जिसे इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली द्वारा लिखा गया माना जाता है। इस किताब की सुरक्षा में अत्यधिक सावधानी बरती जाती है, जिसे देखने या पढ़ने के लिए लाइब्रेरी प्रशासन को 15 दिन पहले आवेदन देना होता है।
सुरक्षा कोहिनूर हीरे से भी अनूठी:
इस किताब को चार दरवाजों और मजबूत लॉकर में रखा गया है। लॉकर दो चाबियों से खुलता है—एक चाबी लाइब्रेरी प्रशासन के पास होती है और दूसरी चाबी पटना कमिश्नर के पास होती है। जब कोई व्यक्ति इस किताब को देखने का आवेदन करता है, तो लाइब्रेरी प्रशासन आवेदन को कमिश्नर ऑफिस भेजता है। निर्धारित दिन पर कमिश्नर ऑफिस का एक अधिकारी दोनों चाबियों को लेकर लाइब्रेरी आता है, और तब लॉकर खोला जाता है। लॉकर खोलने और बंद करने का समय नोट किया जाता है, और किताब के बाहर रहने के दौरान उसकी पूरी निगरानी की जाती है।
इसीलिए खास है यह किताब ?
इस पांडुलिपि की लिखावट को खत-ए-कूफी कहा जाता है, जो इस्लामिक काल की शुरुआती लेखन शैली है। इसके अलावा, इस विशेष लॉकर में कई अन्य दुर्लभ दस्तावेज और किताबें भी सुरक्षित रखी गई हैं। इनमें सैंकड़ों साल पुरानी हस्तलिखित रामायण और गीता, साथ ही कुछ अद्वितीय पेंटिंग्स शामिल हैं। कुल मिलाकर, इस लॉकर में 100-150 दुर्लभ किताबें और पांडुलिपियां हैं, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता के कारण अत्यंत सहेज कर रखी गई हैं।
खुदाबख्श लाइब्रेरी है भारत की सांस्कृतिक धरोहर :
खुदाबख्श लाइब्रेरी न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत में सांस्कृतिक धरोहरों की महत्वपूर्ण धरोहर के रूप में जानी जाती है। पटना में गंगा के किनारे खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी में करीब 21000 ओरिएंटल पांडुलिपियों और 2.5 लाख मुद्रित पुस्तकों का अनूठा भंडार है। हालाँकि इसकी स्थापना पहले हुई थी, लेकिन इसे अक्टूबर 1891 में बिहार के यशस्वी पुत्र खान बहादुर खुदा बख्श ने 4,000 पांडुलिपियों के साथ जनता के लिए खोला था, जिनमें से 1,400 उन्हें अपने पिता मौलवी मोहम्मद बख्श से विरासत में मिली थीं। खुदा बख्श खान ने अपना पूरा निजी संग्रह पटना के लोगों को ट्रस्ट के एक दस्तावेज के माध्यम से दान कर दिया। इसके समृद्ध और मूल्यवान संग्रह के विशाल ऐतिहासिक और बौद्धिक मूल्य को स्वीकार करते हुए, भारत सरकार ने 1969 में संसद के एक अधिनियम द्वारा पुस्तकालय को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया। पुस्तकालय अब पूरी तरह से संस्कृति मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा वित्त पोषित है।
इस स्वायत्त संस्थान का संचालन एक बोर्ड द्वारा किया जा रहा है, जिसके पदेन अध्यक्ष बिहार के राज्यपाल हैं और पुस्तकालय के दैनिक प्रबंधन की जिम्मेदारी खुदा बख्श पुस्तकालय के निदेशक को सौंपी गई है। यहां सुरक्षित रखे गए दुर्लभ दस्तावेज और पांडुलिपियां देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर की अमूल्य संपत्ति हैं। इसीलिए इसकी सुरक्षा भी Z+ सिक्योरिटी से कम नहीं है। इस प्रकार, खुदाबख्श लाइब्रेरी न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि इसकी सुरक्षा व्यवस्था भी इसकी अमूल्यता को दर्शाती है।