Haryana Constitutional Crisis : हरियाणा में संवैधानिक संकट: विधानसभा सत्र नहीं बुलाने से संकट की स्थिति में चुनावी सत्र और संवैधानिक अनिवार्यता पर सवाल

Haryana Constitutional Crisis : हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है। यह संकट इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि राज्य विधानसभा का पिछला सत्र 13 मार्च को हुआ था, और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, 12 सितंबर तक नया सत्र बुलाना अनिवार्य है। यदि यह सत्र नहीं बुलाया गया, तो संवैधानिक संकट और गहरा जाएगा।

 

संवैधानिक नियम और मौजूदा स्थिति :

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के अनुसार, विधानसभा के दो सत्रों के बीच अधिकतम 6 महीने का अंतर होना चाहिए। यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि विधानसभा नियमित रूप से बैठक करे और सरकार को जवाबदेह बनाए रखे। हरियाणा विधानसभा का पिछला सत्र 13 मार्च को समाप्त हुआ था, और अगला सत्र 12 सितंबर से पहले होना अनिवार्य है।

हरियाणा के नए मुख्यमंत्री नायब सैनी ने पिछली बार विश्वासमत हासिल किया था, लेकिन उसके बाद कोई सत्र नहीं बुलाया गया। अब, यदि 12 सितंबर तक सत्र नहीं बुलाया गया, तो राज्यपाल के पास दो प्रमुख विकल्प बचते हैं:
1. अल्पकालिक सत्र बुलाना: राज्य सरकार अगर एक दिन का भी सत्र बुलाती है, तो संवैधानिक अनिवार्यता पूरी हो जाएगी। इससे संवैधानिक संकट टल सकता है।
2. विधानसभा भंग करना: यदि सरकार सत्र बुलाने से इनकार करती है, तो राज्यपाल विधानसभा भंग कर सकते हैं और मुख्यमंत्री को कार्यवाहक सरकार का संचालन करने को कह सकते हैं।

Constitutional crisis in Haryana: Questions on election session and constitutional imperative in case of crisis due to not calling assembly session
Constitutional crisis in Haryana: Questions on election session and constitutional imperative in case of crisis due to not calling assembly session

 

क्यों महत्वपूर्ण है यह मामला?

यह संवैधानिक संकट इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद पहली बार ऐसा मामला सामने आया है। यहां तक कि कोविड महामारी के दौरान भी, हरियाणा में एक दिन का सत्र बुलाकर संवैधानिक अनिवार्यता पूरी की गई थी।

 

अध्यादेशों का मुद्दा :

वर्तमान में, राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 213 (1) के तहत 5 अध्यादेशों को स्वीकृति दी है। यदि विधानसभा को समय से पहले भंग कर दिया जाता है, तो इन अध्यादेशों की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। फिर भी, सत्र बुलाना इसलिए जरूरी है ताकि इन अध्यादेशों को विधायिका की मंजूरी मिल सके।

Constitutional crisis in Haryana: Questions on election session and constitutional imperative in case of crisis due to not calling assembly session
Constitutional crisis in Haryana: Questions on election session and constitutional imperative in case of crisis due to not calling assembly session

 

क्या राज्यसभा उपचुनाव पर है सरकार की नजर?

संवैधानिक संकट के बीच, राज्यसभा की एक सीट के उपचुनाव की प्रक्रिया भी चल रही है, जो दीपेंद्र हुड्डा के इस्तीफे के कारण खाली हुई है। चुनाव आयोग ने 21 अगस्त को नामांकन की अंतिम तिथि तय की है, और 3 सितंबर को मतदान होगा। यदि इससे पहले विधानसभा भंग कर दी जाती है, तो यह चुनाव रद्द हो सकता है, क्योंकि इस चुनाव में विधायक ही वोट देते हैं।

 

हरियाणा में विधानसभा में दलों की स्थिति:

हरियाणा विधानसभा की कुल 90 सीटों में से वर्तमान में 87 सीटें भरी हैं। तीन सीटें रिक्त हैं। दलों की वर्तमान स्थिति कुछ इस प्रकार है:

पार्टी विधायक संख्या
भारतीय जनता पार्टी (BJP) 41
कांग्रेस (INC) 29
जननायक जनता पार्टी (JJP) 10
हरियाणा लोकहित पार्टी (HLP) 1
इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) 1
निर्दलीय 5

भाजपा सरकार को 45 सीटों के बहुमत के करीब 41 सीटें हैं, जबकि विपक्ष में 44 विधायक हैं। हालांकि, कांग्रेस की विधायक किरण चौधरी हाल ही में भाजपा में शामिल हो चुकी हैं, जिससे कांग्रेस की संख्या कम हुई है।

Constitutional crisis in Haryana: Questions on election session and constitutional imperative in case of crisis due to not calling assembly session
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क्या हो सकता है आगे का रास्ता :

इस संवैधानिक संकट से निपटने के लिए हरियाणा राज्य सरकार के पास सीमित विकल्प हैं। सरकार को जल्द ही सत्र बुलाकर संवैधानिक अनिवार्यता पूरी करनी होगी। यदि ऐसा नहीं होता, तो राज्यपाल के पास विधानसभा भंग करने का विकल्प रहेगा, जिससे चुनावी प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है।

 

आखिरी तारीखें:

  • विधानसभा का सत्र बुलाने की अंतिम तिथि: 12 सितंबर 2024
  • राज्यसभा उपचुनाव:3 सितंबर 2024
  • विधानसभा चुनाव: 1 अक्टूबर 2024 (मतदान) और 4 अक्टूबर 2024 (गणना)

    हरियाणा में 14वीं विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर तक है, लेकिन चुनावी प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। ऐसे में सभी की नजरें इस संवैधानिक संकट के समाधान पर हैं।

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