DAP Crisis India: डीएपी खाद की कमी से हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में किसान परेशान हैं। खासकर गेहूं और सरसों की बुवाई के समय इस खाद की अत्यधिक आवश्यकता होती है। लेकिन इस बार मांग और आपूर्ति में भारी अंतर की वजह से किसानों को दो-दो दिन तक लंबी कतारों में इंतजार करना पड़ रहा है। कुछ जगहों पर डीएपी की ब्लैक मार्केटिंग भी हो रही है, जहां 1350 रुपये वाले बैग के लिए 2000 रुपये तक चुकाने पड़ रहे हैं।
DAP Crisis Reasons In India: डीएपी संकट के कारण
1. आयात पर निर्भरता:
भारत में यूरिया के बाद डीएपी की सबसे अधिक खपत होती है। कुल डीएपी की मांग का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है, लेकिन इस साल डीएपी के आयात में कमी आई है। इसके पीछे भू-राजनीतिक मुद्दे भी शामिल हैं।
जनवरी 2024 में लाल सागर में चल रहे संकट के कारण डीएपी के शिपमेंट में देरी हुई, जिससे जहाजों को अधिक दूरी तय करनी पड़ी और आपूर्ति प्रभावित हुई।
2. कीमतों में वृद्धि:
DAP Crisis India: सितंबर 2023 से लेकर सितंबर 2024 के बीच डीएपी की वैश्विक कीमत में लगभग 7.3% की वृद्धि हुई, जो 589 डॉलर प्रति मीट्रिक टन से बढ़कर 632 डॉलर प्रति मीट्रिक टन हो गई।
हालांकि, घरेलू बाजार में किसानों के लिए MRP 1350 रुपये प्रति 50 किलोग्राम बैग बनाए रखा गया, ताकि उन पर कीमत का भार न पड़े। लेकिन बढ़ी कीमतों से आयात लागत बढ़ने से आपूर्ति पर असर पड़ा।
3. मांग और आपूर्ति में अंतर:
DAP Crisis India: सितंबर 2024 में 9.35 लाख मीट्रिक टन डीएपी की जरूरत थी, जबकि उपलब्धता केवल 7.01 लाख मीट्रिक टन रही। इससे अक्टूबर में भी कमी का प्रभाव पड़ा।
हरियाणा,पंजाब, महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में जरूरत के अनुसार पर्याप्त डीएपी नहीं मिल सका।
DAP Crisis Politics: राजनीतिक मुद्दा
डीएपी संकट का सामना सभी राजनीतिक दलों के शासित राज्यों में हो रहा है। विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेर रहा है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस सांसद कुमारी शैलजा ने इस खाद की कमी को लेकर सरकार की नीतियों की आलोचना की है। किसानों की कतारों और ब्लैक मार्केटिंग की घटनाओं ने इस मुद्दे को और संवेदनशील बना दिया है।
DAP Crisis Solutions In India:समाधान के उपाय और विकल्प
1. वैकल्पिक खाद:
किसान डीएपी की कमी होने पर गेहूं और आलू जैसी फसलों में विकल्प के रूप में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (एनपीके) जैसे उर्वरकों का उपयोग कर सकते हैं।
2. घरेलू उत्पादन बढ़ाना:
DAP Crisis India: दीर्घकालिक समाधान के लिए डीएपी का घरेलू उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है। रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय इस दिशा में कुछ प्रयास कर रहा है, लेकिन अभी नतीजे स्पष्ट नहीं हैं।
3. आयात स्रोतों में विविधता:
DAP Crisis India: सरकार को डीएपी के आयात के लिए नए बाजारों की तलाश करनी होगी ताकि वैश्विक समस्याओं का प्रभाव भारत के खाद बाजार पर न पड़े। एक या कुछ ही देशों से DAP के लिए निर्भरता को बढ़ाकर कई देशों से DAP का आयात करना चाहिए।
भारत में डीएपी संकट ने इस महत्वपूर्ण खाद की कमी से किसान भाइयों को असुविधा में डाल दिया है। इस समस्या का समाधान केवल आयात पर निर्भरता घटाकर घरेलू उत्पादन बढ़ाने से ही संभव होगा ताकि किसान समय पर बुवाई कर सकें।