hot seat uchaana: बांगर के रण में 2 पुराने धुरंधरों के बीच भाजपा ने नया चेहरा उतार रोमांचक किया मुकाबला, निर्दलीय ने बढ़ाई धड़कनें

Anita Khatkar
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प्रदेश सबसे अधिक हाट सीट माने जाने वाले उचाना कलां (hot seat uchaana) में पहली बार त्रिकोणीय नहीं बल्कि बहुकोणीय हो चला है। उचाना के रण में भाजपा, कांग्रेस और जजपा से उतरे प्रत्याशी सीधे तौर पर सरकार का हिस्सा रहे हैं। इसके चलते उचाना में कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़ रहे बागियों का प्रदर्शन भी निर्णायक हो सकता है। प्रदेश के बड़े राजनीतिक परिवारों के बीच भाजपा ने अपने साधारण कार्यकर्ता को उम्मीदवार बना कर मुकाबला रोचक कर दिया है। इसके आधार पर निर्दलीय प्रत्याशी व भाजपा के उम्मीदवार द्वारा परिवारवाद बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है।

उचाना क्षेत्र में कुल मतदाता : 218507
उचाना विधानसभा में पुरुष मतदाता : 117088
उचाना विधानसभा में महिला मतदाता : 101419
उचाना विधानसभा में कुल गांव : 66

उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र 1977 से प्रभाव में आया। तभी से उचाना में बीरेंद्र सिंह (Birender singh)का ही प्रभाव रहा है। बीरेंद्र सिंह का अधिकतर राजनीतिक जीवन कांग्रेस में रहा है। हालांकि बीरेंद्र सिंह परिवार दस साल भाजपा में रहा। इस दौरान 2014 के चुनाव में बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता भाजपा के टिकट पर जीतने में सफल रही, लेकिन 2019 के चुनाव में जजपा के दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) को 92504 व प्रेमलता को 45052 मत मिले। ऐसे में दुष्यंत चौटाला 47452 मतों से विजयी हुए।

 

hot seat uchaana:इस बार जजपा की स्थिति उचाना वैसी नहीं है। काफी कार्यकर्ता पार्टी छोड़ चुके हैं। चुनाव के शुरूआती दौर में दुष्यंत चौटाला का कई गांवों में विरोध भी हुआ, हालांकि अब वे अपनी पुरानी टीम को साथ जोड़ने में सफल रहे हैं। पहली बार उचाना में मजबूत तरीके से भाजपा भी एंट्री कर रही है। दस साल की सरकार के बाद भाजपा ने उचाना में काडर भी तैयार किया और अपनी योजनाओं के बल पर लोगों से समर्थन मांगा जा रहा है।

hot seat uchaana : उचाना विधानसभा इसलिए बनी हाट सीट

2009 के चुनाव तक उचाना कलां में बीरेंद्र सिंह का एकतरफा माहौल रहा। 1977 से 2005 तक हुए सात में से पांच चुनाव अकेले बीरेंद्र सिंह जीते हैं। 2009 में इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने उचाना के रण में ताल ठोकी तो उचाना कलां हाट सीट हो गई। हालांकि इससे पहले भी बीरेंद्र सिंह दो बार लोकदल व इनेलो के प्रत्याशियों से हार चुके थे, लेकिन ओमप्रकाश चौटाला के उचाना से चुनाव लड़ने पर इस सीट पर सभी की नजर हो गई। 2009 के चुनाव में ओमप्रकाश चौटाला ने बीरेंद्र सिंह को 621 मतों से हरा दिया।

hot seat uchaana:इस चुनाव में ओमप्रकाश चौटाला को 62669 व कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे बीरेंद्र सिंह को 62048 मत मिले। इसके बाद 2014 में बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ी और इनेलो के दुष्यंत चौटाला को 7480 मतों से हरा दिया। हालांकि 2019 के चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने हार का बदला लेते हुए भाजपा की प्रेमलता को हरा दिया।

अब बीरेंद्र सिंह परिवार कांग्रेस में है और पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह उचाना से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे विरेंद्र घोघड़ियां ने बड़े नेताओं की धड़कने बढ़ाई हुई हैं। विरेंद्र को लगातार मिल रहे जनसमर्थन के चलते वह हलके में इस समय नंबर वन पर चल रहे हैं।

 

hot seat uchaana:कांग्रेस के बागियों का प्रदर्शन तय करेगा परिणाम

उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के बागी भी नए समीकरण बना रहे हैं। कांग्रेस से बागी होकर विरेंद्र घोघड़ियां व दिलबाग संडील निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। यह दोनों नेता परिवारवाद की राजनीति के विरोध में बीरेंद्र सिंह व दुष्यंत चौटाला के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। इनको उचाना के मतदाता कितना समर्थन देते हैं, यह समय ही बताएगा।

hot seat uchaana : व्यक्तिगत हमले अधिक
उचाना में तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवार सरकार का हिस्सा रहे हैं या हैं। ऐसे में उचाना का चुनाव राजनीतिक मुद्दों की बजाय व्यक्तिगत हमलों पर चल रहा है। सभी नेता भाजपा, कांग्रेस व जजपा के उम्मीदवारों पर विकास नहीं करवाने के निजी आरोप लगा रहे हैं। इसमें विकास के मुद्दे गौण हो चले हैं।

 

दुष्यंत चौटाला की चुनौती
दुष्यंत चौटाला सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे। ऐसे में किसान आंदोलन का प्रभाव उनके चुनाव में साफ दिख रहा है। उन्होंने उचाना का चुनाव पिछली बार 47452 मतों से चुनाव जीता था। वहीं लोकसभा चुनाव में उनकी मां नैना चौटाला उचाना से महज 4210 ही वोट ले पाई। ऐसे में अब दुष्यंत चौटाला पिछली जीत के अनुसार अपना प्रदर्शन दोहराने का प्रयास कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में दुष्यंत चौटाला को कई जगह विरोध झेलना पड़ रहा है।

बृजेंद्र सिंह की चुनौती
पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह की राजनीतिक पैठ उचाना में गहरी है। हालांकि उनके पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह पांच बार उचाना से विधायक बन चुके हैं, लेकिन इस बार बीरेंद्र सिंह को भी उचाना में काफी मेहनत करनी पड़ रही है। क्योंकि बृजेंद्र सिंह भाजपा सरकार में सांसद रहे, ऐसे में लोग कृषि कानूनों को लेकर उनको भी निशाना बना रहे हैं। उचाना में कांग्रेस के संगठन के नाम पर ही बीरेंद्र सिंह का ही संगठन रहा है।

देवेंद्र अत्री की चुनौती
देवेंद्र अत्री ब्राह्मण समाज से आते हैं, लेकिन उचाना जाट बाहुल्य क्षेत्र है। उचाना में बीरेंद्र सिंह भाजपा के साथ रहे, ऐसे में अलग से पार्टी का संगठन नहीं खड़ा हो पाया। उनका मुकाबला दो बड़े चेहरों से हो रहा है। और इनके मुकाबले देवेंद्र अत्री का चुनावी अनुभव शून्य है। ऐसे में बांगर की जमीन पर मजबूत पकड़ बनाना उनके लिए चुनौती है। हालांकि यहां भाजपा गैर जाट मतदाताओं को साधने में लगी हुई है।

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